- चुनाव प्रचार में भाषा की मर्यादा तार-तार
- कर्नाटक में प्रज्ज्वल रवन्ना पर क्या कहेंगे पीएम
- 1993 में सिर्फ हिंदुत्व शब्द के उच्चारण पर बाला साहेब ठाकरे हुए थे दंडित
- अब जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 123 और आदर्श आचार संहिता के पेरा 01 व 03 के लगातार उल्लंघन पर पार्टी अध्यक्ष को नोटिस
डॉ.अजय कृष्ण चतुर्वेदी
वाराणसी. लोकसभा चुनाव 2024 के लिए दो चरण के मतदान पूरे हो चुके हैं। लेकिन अभी पांच चरण की खातिर मतदान होना शेष है। ये चुनाव दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को संरक्षित रखने के लिए हो रहा है। ऐसा प्रजातंत्र जिसमें आम जनता सर्वोपरि होती है। जनता ही जनप्रतिनिधि का चयन करती है अपने बहुमूल्य वोट से। वोट देते वक्त जनता के जेहन में खुद के हितों की सुरक्षा का मुद्दा सर्वोपरि होता है।
पांच साल में एक बार ही उनके आगे झुकता
इस बात से सभी भलिभांति परिचित हैं कि जनता जिसे अपना प्रतिनिधि चुनती है, वो पांच साल में एक बार ही उनके आगे झुकता है। वो भी वोट मांगने के लिए। लेकिन जब वही जनप्रतिनिधि आपसे सत्य से परे बात करने लगे, जनता को बरगलाने लगे, भरी सभा में एक समुदाय विशेष को निशाना बनाने लगे, वो समुदाय जो इसी देश का नागरिक है। वोटर है। वो प्रत्यशी जो देश की आधी आबादी के साथ बदसलूकी करने वाला हो, उसकी करतूत जब सामने आए तो वो देश छोड़ कर भाग जाए। वो उम्मीदवार जिसका संबंध देश के एक पूर्व प्रधानमंत्री से हो और दूसरा प्रधानमंत्री उसके लिए वोट मांगता हो।
क्या ऐसी हरकतों की बदौलत देश शक्तिशाली और विकसित राष्ट्र बनाया जाएगा। राजनीति में गिरावट इस कदर हो जाए कि निर्वाचन आयोग को देश के प्रधानमंत्री के विरुद्ध आदर्श आचार संहिता उल्लंघन का नोटिस जारी करना पड़ जाए, भले ही वो नोटिस प्रधानमंत्री के आचरण के लिए पार्टी अध्यक्ष को या पार्टी को जारी किया जाए। क्या ये शर्मनाक नहीं है। क्या हम सभी देशवासियों को इस पर विचार नहीं करना चाहिए।
जस्टिस वर्मा का वो फैसला जिसने बाला साहेब ठाकर पर लगाया था प्रतिबंध
1993 में महज हिंदुत्व का शब्द के उच्चारण मात्र से सर्वोच्च न्यायालय ने बाला साहेब ठाकरे का चुनाव रद्द कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जीएस वर्मा की अदालत ने उनके छह साल के लिए चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी थी। लेकिन अब प्रधानमंत्री लगातार जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 123 और आदर्श आचार संहिता के पेरा एक व तीन का लगातार उल्लंघन कर रहे हैं। आपत्तिजनक टिप्पणियां कर रहे हैं। एक समुदाय विशेष को लगातार निशाना बना रहे हैं।
आलम ये है कि जब उसी पार्टी के एक मुस्लिम नेता प्रधानमंत्री के बयानों पर आपत्ति जताते हैं तो उन्हें दंडित होना पड़ता है। उन्हें जेल भेज दिया जाता है। पर चुनाव आयोग उन्हें (प्रधानमंत्री को नहीं) नहीं बल्कि पार्टी के अध्यक्ष के नाम नोटिस जारी करता है। क्या इससे लोकतंत्र बचेगा। ये है देश के शीर्ष नेतृत्व का आदर्श।
कर्नाटक का मामला भी शर्मशार करने वाला
एक एनडीए का नेता पर सैकड़ों महिलाओं संग दुराचार का आरोप लगता है। उसके दुराचार के वीडियो ही नहीं पेन ड्राइव वायरल किए जाते हैं। भारतीय जनता पार्टी के लोग ही उसे टिकट नहीं देने की मांग करते हैं, मगर सब दरकिनार कर न केवल टिकट मिलता है बल्कि उसके लिए खुद प्रधानमंत्री जनसभा में वोट मांगते हें। उधर उस नेता की काली करतूत जब जनता के बीच वायरल होती है तो वो देश छोड़ कर भाग कर जर्मनी चले जाते हैं। क्या ऐसे लोग इस देश की सत्ता पर काबिज होंगे। ये विचारणीय मुद्दा है।
ब्रजभूषण शरण सिंह का मसला अभी भी न्यायालय में विचाराधीन है
ऐसे एक दो नहीं कई मसले हैं। भाजपा के बाहुबली नेता ब्रज भूषण शरण सिंह जिन पर देश की उन बेटियों ने दुराचार का आरोप लगाया हो। जिनके खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने के लिए उन पहलवान बेटियों को सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ता है। वो मामला आज भी न्यायालय में विचाराधीन है। मगर पार्टी की ओर से उनके खिलाफ किसी तरह की सख्त कार्रवाई नहीं होती।
आईआईटी बीएचयू की छात्रा संग गैंग रेप के आरोपी भी पीएम संग फोटो खिंचवाते हैं
आईआईटी बीएचयू की छात्रा से बंदूक की नोक पर गैंग रेप के आरोपी पीएम के साथ फोटो खिंचवाते हैं। विधानसभा चुनाव के दौरान मध्यप्रदेश में जा कर चुनाव प्रचार करते हैं। तीन-तीन आरोपी और तीनों ही भारतीय जनता पार्टी के आईटी सेल के पदाधिकारी हैं। न केवल प्रधानमंत्री बल्कि मुख्यमंत्री, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष, बाल विकास मंत्री के संग उनकी तस्वीरें शेयर होती हैं। मगर कोई भी उनकी भर्तसना नहीं करता।
राहुल गांधी के शक्ति शब्द के प्रयोग पर पीएम भड़क जाते हैं
उधर जब पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी मुंबई के शिवाजी पार्क में एक ताकत के रूप में शक्ति का शब्द का इस्तेमाल करते हैं तो, प्रधानमंत्री उन पर हमलावर हो जाते हैं। वो शक्ति को नारी शक्ति से जोड़ देते हैं। अब तो जनता भी कहने लगी है कि भाजपा के उसके शीर्ष नेता पहले अपने गिरेबां में क्यों नहीं झांक लेते।
प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ शिकायत
कांग्रेस की ओर से निर्वाचन आयोग में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ जो शिकायत की है, उसके तहत उसने कहा है कि प्रधानमंत्री ने 21 अप्रैल को राजस्थान के बांसवाड़ा रैली में कहा था कि, अगर कांग्रेस की सरकार आई तो लोगों की संपत्तियां लेकर ज्यादा बच्चे वालों और घुसपैठियों में बांट दी जाएगी। साथ ही पीएम मोदी ने कहा था कि कांग्रेस के घोषणापत्र में लिखा है कि, सरकार बनने पर मां-बहनों के गोल्ड का हिसाब करेंगे, उसकी जानकारी लेंगे और फिर बांट देंगे। कांग्रेस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विरुद्ध आचार संहिता उल्लंघन का मामला माना है।
राहुल गांधी के विरुद्ध बीजेपी की शिकायत
उधर बीजेपी ने राहुल गांधी पर अपनी रैलियों में भाषा और शब्दों के प्रयोग को लेकर चुनाव आयोग में शिकायत दर्ज कराई है। बीजेपी का आरोप है कि राहुल गांधी ने तमिलनाडु में भाषा के आधार पर लोगों के बीच भ्रम फैलाने का प्रयास किया। बीजेपी नेताओं का आरोप है कि राहुल गांधी, अपने भाषणों में भाषा के आधार पर उत्तर और दक्षिण भारत को बांटने की कोशिश कर रहे हैं। इसे आधार बनाते हुए भाजपा ने अपने लिखित शिकायती पत्र में राहुल गांधी के विरुद्ध सख्त कार्रवाई की मांग की थी। हालांकि चुनाव आयोग की ओर से भेजे गए नोटिस पर वरिष्ठ कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा कि हमने आयोग में शिकायत की थी कि जिस तरह से बीजेपी धर्म का इस्तेमाल कर रही है, या यूं कहें कि दुरुपयोग कर रही है। वो अत्यंत चिंताजनक है।
कानून के जानकार आयोग की प्रक्रिया प्रक्रिया पर उठा रहे सवाल
निर्वाचन आयोग के पार्टियों को नोटिस जारी करने पर कानून के जानकार सवाल खड़ा कर रहे हैं। उनका कहना है कि, किसी नेता के बयान के लिए पार्टी को नोटिस जारी करने की स्थिति में संबंधित आरोपी को किस तरह से दंडित किया जा सकेगा? फिर आरोपी को आयोग नहीं तो और कौन दंडित करेगा?
क्या पूरी पार्टी ही दंडित की जाएगी
कानूनविदों का सवाल है कि मौजूदा हालात में जब पार्टी नोटिस का जवाब देती है और आयोग उससे संतुष्ट नहीं होता तो क्या पूरी पार्टी को ही दंडित किया जाएगा? अगर हां तो वो दंड क्या होगा, उसका स्तर क्या होगा? ये बेहद संवेदनशील मामला होगा। हालांकि मुख्य निर्वाचन आयुक्त राजीव कुमार पहले ही प्रेसवार्त में ये कह चुके हैं कि आचार संहिता का बार-बार उल्लंघन करने वाले प्रचारकों के ख़िलाफ़ सख्त कार्रवाई की जाएगी।”
ऐसे में जानकार ये मान रहे हैं कि इस नई प्रक्रिया से आयोग आचार संहिता उल्लंघन के मामले में सीधे तौर पर संबंधित पार्टी को भी कानूनी दायरे में लाने का प्रयास कर रही है जिसका नाता संबंधित स्टार प्रचारक से है। इसके पीछे तर्क ये है कि निर्वाचन आयोग में पंजीकरण के वक्त संबंधित पार्टी ये वादा करती है कि वो संवैधानिक आदर्शों का अक्षरशः पालन करेगी। ऐसे में अगर कोई स्टार प्रचारक कई बार आचार संहित का उल्लंघन करता है तो पार्टी को पंजीकरण के वक्त किए वादे का स्मरण कराएगी। ये बड़ा मामला हो सकता है।
अब तक किसी पीएम को नहीं भेजा गया आचार संहिता उल्लंघन का नोटिस
बता दें कि निर्वाचन आयोग पूर्व में कई दिग्गज नेताओं को आचार संहिता उल्लंघन का नोटिस भेज चुका है, जिसमें 2007 के गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी को, नरेंद्र मोदी को पूर्व में (2013 में) भी नोटिस भेजा गया जा चुका है, लेकिन तब वो प्रधानमंत्री नहीं थे। इसके अलावा तत्कालीन भाजपा महासचिव अमित शाह को 2014 में निर्वाचन आयोग ने आचार संहिता उल्लंघन का नोटिस भेजा था। लेकिन आजाद भारत के इतिहास में अब तक किसी भी मौजूदा प्रधानमंत्री को आचार संहिता के उल्लंघन की शिकायत पर नोटिस नहीं भेजा गया है।
क्या ऐसे होंगे देश के युवाओं के रोल मॉडल
वैसे आयोग के नोटिस जारी करने के तरीके को लेकर कानून के जानकारों का सवाल खड़ा करना अलग बात है, पर एक बड़ा सवाल है कि देश का कोई स्टार प्रचारक हो, जिस पर न केवल आदर्श आचार संहिता के पालन का दायित्व या एक आदर्श प्रस्तुत करने का दायित्व भी है। वो अपने ही देश के एक समुदाय विशेष को टार्गेट कैसे कर सकता है। वो भी तो इसी देश के नागरिक हैं। वो भी तो वोटर हैं। सवाल ये है कि पार्टी विशेष की जीत के लिए प्रयोग किए जा रहे ऐसे हथकंडे क्या विभाजक नहीं? इसी तरह से पीएम के मंगलसूत्र वाले बयान से भी आमजन आहत जरूर महसूस कर रहा है।