PM मोदी और जिनपिंग की मुलाकात का दुनिया के लिए क्या है मतलब? कितना बदलेगा वर्ल्ड ऑर्डर​

 आबादी के लिहाज़ से दुनिया के दो सबसे बड़े देशों भारत और चीन के बीच शांति पूरी दुनिया के हित में है. भारत और चीन दुनिया की दो बड़ी ताक़तें हैं, दोनों ही पड़ोसी भी हैं और दुनिया के दो सबसे ऐतिहासिक देश भी जहां सभ्यता फली फूली और जिसने दुनिया के विकास में एक अहम भूमिका निभाई.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) 16वें ब्रिक्स समिट 2024 (BRICS Summit 2024) में शिरकत करने रूस गए हैं. बुधवार को कजान शहर में समिट से इतर PM मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग (Xi Jinping) की मुलाकात हुई. दोनों नेता 5 साल बाद बातचीत की मेज पर बैठे. आखिरी बार 2019 में उनके बीच द्विपक्षीय बातचीत हुई थी. फिर 2020 में पूर्वी लद्दाख के गलवान में हुई हिंसक झड़प के बाद दोनों नेताओं की द्विपक्षीय मुलाकात नहीं हुई है. हालांकि, दोनों नेता इस दौरान दो अंतरराष्ट्रीय मंचों पर मिले थे, लेकिन बात नहीं हुई थी. कजान में बातचीत के दौरान दोनों नेताओं ने सीमा विवाद को जल्द से जल्द निपटाने, आपसी सहयोग और आपसी विश्वास को बनाए रखने पर जोर दिया.

आइए समझते हैं कि ब्रिक्स समिट के दौरान रूस के शहर कजान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच हुई मुलाकात दोनों देशों के रिश्तों के लिए कितनी अहम साबित होगी? दुनिया के लिए इसका क्या मतलब है? मोदी और जिनपिंग की मुलाकात से वर्ल्ड ऑर्डर कितना बदलेगा?

भारत और चीन के बीच 3488 किलोमीटर लंबा बॉर्डर
भारत और चीन के बीच 3488 किलोमीटर लंबा बॉर्डर है. दोनों देश लद्दाख में 1597 किलोमीटर, अरुणाचल प्रदेश में 1126 किलोमीटर, उत्तराखंड में 345 किलोमीटर, सिक्किम में 220 किलोमीटर और हिमाचल प्रदेश में 200 किलोमीटर बॉर्डर शेयर करते हैं. 1962 की जंग में चीन के सैनिक अरुणाचल प्रदेश और लद्दाख के अक्साई चिन इलाके में घुस गए थे. भारतीय सेना ने चीनी सैनिकों को अरुणाचल से तो खदेड़ दिया था. लेकिन, चीन के सैनिकों ने अक्साई चिन पर कब्जा कर लिया था. अक्साई चीन लद्दाख से सटा हुआ है और करीब 38 हजार वर्ग किलोमीटर का है.

भारत और चीन के बीच लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा यानी LAC है. यह एक तरह से सीज फायर लाइन है. 1962 की जंग के बाद दोनों देशों की सेनाएं जहां, तैनात थी; उसे ही LAC मान लिया गया.

गलवान झड़प के बाद खराब हुए रिश्ते
पूर्वी लद्दाख के गलवान में हुई हिंसक झड़प को बाद दोनों देशों के बीच तनाव इतना बढ़ गया कि आपसी संबंध सबसे खराब दौर में पहुंच गए. जून 2020 में लद्दाख की गलवान घाटी में भारत और चीन के सैनिकों के बीच 45 साल बाद हिंसक झड़प हुई. जिसमें भारत के 20 जवान शहीद हो गए. चीन के इससे भी दोगुनी संख्या में सैनिक मारे गए थे. अंतरराष्ट्रीय मीडिया में चीन के मारे गए सैनिकों की संख्या 35 बताई गई थी. लेकिन चीन ने सिर्फ 3 सैनिकों की मौत की बात स्वीकार की.

इसके बाद चीन और भारत की सीमा पर कई और झड़पें हुईं. जनवरी 2021 में सिक्किम के नाकू ला पास, सितंबर 2021 को पैंगोंग झील के पास और दिसंबर 2022 में अरुणाचल प्रदेश के तवांग सेक्टर में झड़प की घटनाएं हुई थी. विवाद सुलझाने की कोशिशों के बीच इन तमाम झड़पों का असर भारत और चीन के रिश्तों पर व्यापक तौर पर पड़ा. 

21 कोशिशों के बाद पिघली रिश्तों पर जमी बर्फ
इन हालात में रूस में हो रही ब्रिक्स देशों की बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच मुलाकात के लिए बहुत ही ठोस भूमिका की ज़रूरत थी. ये भूमिका पिछले कई हफ्तों से लगातार तैयार हो रही थी. एक ओर कूटनीतिक स्तर पर बातचीत चल रही थी, तो दूसरी ओर दोनों देशों के बीच सैन्य स्तर पर दोनों देशों के बीच सीमा विवाद सुलझाने के लिए कोर कमांडर स्तर पर 21 राउंड की बातचीत हो चुकी थी. बातचीत के ताज़ा दौर का असर दिखा और दोनों देशों ने विवाद के अधिकतम बिंदुओं पर सहमति बना ली. ये तय हुआ कि लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) पर मई 2020 से पहले की स्थिति बहाल की जाए. दोनों देशों ने सीमा पर निगरानी के लिए पेट्रोलिंग के तरीके पर भी सहमति बना ली है.

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जिनपिंग से मुलाकात के बाद क्या बोले PM मोदी?
रूस के कज़ान में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग जब अपने-अपने डेलीगेशन के साथ बैठे, तो आपसी संबंध सुधारने से जुड़ी सहमति पर मुहर भी लग गई. प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि सीमा पर विवादों और मतभेदों के साथ ज़िम्मेदारी से निपटना जरूरी है, ताकि इससे शांति और स्थिरता पर असर न पड़े. दोनों ही देशों ने तय किया है कि भारत-चीन सीमा विवाद को स्थायी तौर पर सुलझाने के लिए दोनों देशों के विशेष प्रतिनिधि जल्द ही मिलेंगे. भारत की ओर से राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल विशेष प्रतिनिधि हैं, तो चीन की ओर से उनके विदेश मंत्री वांग यी विशेष प्रतिनिधि हैं.

दुनिया के लिए इसका क्या मतलब है?
जैसा कि भारत के विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने भी कहा कि भारत और चीन के बीच संबंधों में सुधार न सिर्फ क्षेत्रीय शांति, स्थिरता के लिए, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी शांति, स्थिरता और संपन्नता के लिए काफी अहम है. चीन के साथ संबंधों में सुधार की शुरुआत भारत के लिए भी एक बड़ी कामयाबी है. वो भी एक ऐसे दौर में जब भारत पश्चिमी देशों के भी करीब है. उनसे लगातार भिड़ रहे रूस का भी सबसे विश्वस्त दोस्त साबित हुआ है. चीन के साथ संबंध बेहतर होने से भारत की हैसियत दुनिया के भूसामरिक परिदृश्य में और बढ़ जाएगी. भारत जिस तरह से दुनिया के नक्शे पर उभरा है, वो बताता है कि उसके रिश्तों को आपसी विश्वास की बुनियाद पर बने हैं.

प्रधानमंत्री मोदी ने दो दिन पहले ही NDTV वर्ल्ड समिट में ये स्पष्ट किया था. मोदी ने कहा था, “भारत टेकन फॉर ग्रांटेड रिश्ते नहीं बनाता. हमारे रिश्तों की बुनियाद- विश्वास और विश्वसनीयता के आधार पर है. ये बात दुनिया भी समझ रही है. भारत एक ऐसा देश है, जिसकी प्रगति से दुनिया में आनंद का भाव आता है. भारत सफल होता है, विश्व को अच्छा लगता है. अब चंद्रयान की घटना देख लीजिए, पूरे विश्व ने उसको एक उत्सव के रूप में मनाया. भारत आगे बढ़ता है तो, जलन का, ईर्ष्या का भाव नहीं पैदा होता. क्योंकि भारत की प्रगति से पूरी दुनिया को फायदा होगा.”

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मोदी और जिनपिंग की मुलाकात से वर्ल्ड ऑर्डर कितना बदलेगा?
दुनिया में शक्तियों का संतुलन बनता बिगड़ता रहा है. नए शक्ति संतुलन में भारत को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता. बीते दो दशक में भारत की ताक़त काफ़ी तेज़ी से बढ़ी है. चाहे वो सैन्य ताक़त हो, आर्थिक ताक़त हो, टैक्नॉलजी की ताक़त हो या जनसंख्या के तौर पर युवाशक्ति की ताक़त हो. आर्थिक तौर पर भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी ताक़त बन चुका है. 2027 तक भारत के दुनिया के तीसरी सबसे बड़ी आर्थिक ताक़त बनने की पूरी संभावना है. भारत का दुनिया के तमाम बड़े बहुराष्ट्रीय मंचों का हिस्सा बनना उसकी इसी ताक़त को दर्शाता है. 

दुनिया में पश्चिमी देशों के प्रभुत्व को चुनौती दे रहा ब्रिक्स भी ऐसा ही एक मंच है. रूस के तातारस्तान प्रांत के कज़ान शहर में हुए ब्रिक्स समिट में पांचों संस्थापक देश ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका तो शामिल हुए ही… पांच नए सदस्यों मिस्र, इथियोपिया, ईरान, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात को औपचारिक तौर पर इसमें शामिल किया गया. इन नए सदस्यों के शामिल किए जाने के बाद बड़ी शक्तियों का क्लब ब्रिक्स दुनिया के लिहाज़ से ज़्यादा प्रतिनिधित्व वाला हो गया.

 पुतिन ने 20 से ज़्यादा देशों को भी ब्रिक्स समिट का दिया न्योता
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने 20 से ज़्यादा देशों को भी ब्रिक्स समिट में न्योता दिया, जिन्होंने इस क्लब में शामिल होने के लिए अर्ज़ी दी है. इस बैठक ने ये संकेत भी दिया है कि रूस को अलग थलग करने की पश्चिम देशों की सारी ताक़त के बावजूद दुनिया में रूस के पास मित्र देशों की कमी नहीं है. 

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दुनिया ने देखी भारत-रूस की केमेस्ट्री
भारत रूस का सबसे विश्वस्त मित्र साबित हुआ है. ये तब है जब भारत उन देशों के भी काफ़ी क़रीब है, जो लगातार रूस को संदेह से देखते रहे हैं. रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से लगातार रूस के ख़िलाफ़ यूक्रेन की सैन्य और आर्थिक मदद कर रहे हैं. अमेरिका उनमें सबसे अहम है. यही नहीं, भारत अपनी दोस्ती के साथ साथ शांति की अहमियत भी जानता है. यही वजह है कि चाहे वो पश्चिम एशिया में इज़रायल-हमास युद्ध हो, इज़रायल-ईरान तनाव हो या रूस यूक्रेन युद्ध… भारत खुलकर बात करता है. शांति की बात करता है.

कोई भी देश ऐसा तभी कर सकता है, जब वो वैश्विक शांति को देशों की आपसी राजनीति से ऊपर रखे. तभी भारत अमेरिका से भी उसी जवाबदेही और स्पष्टवादिता के साथ बात करता है. यही वजह है कि एशिया प्रशांत क्षेत्र में उसने भारत की अहम भूमिका को समझा और ऑस्ट्रेलिया, जापान जैसे विश्वस्त सहयोगियों के साथ भारत को QUAD में शामिल किया है. ये एशिया प्रशांत क्षेत्र में चीन की चुनौती से निपटने की कोशिश है.

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भारत को नजरअंदाज नहीं कर सकता कोई मंच
दरअसल, दुनिया का कोई ऐसा बहुराष्ट्रीय मंच नहीं है जो भारत को नज़रअंदाज़ कर सके. ब्रिक्स, क्वॉड के अलावा जी 20 और शंघाई सहयोग संगठन में भी भारत अहम भूमिका निभा रहा है. दूसरी ओर, भारत G-7 में भी एक इनवाइटी के तौर पर शामिल है. संयुक्त राष्ट्र कि बात करें, तो भारत भले ही अभी पांच स्थायी सदस्यों में शामिल न हो, लेकिन स्थायी सदस्य बनाए जाने के भारत के दावे को चीन को छोड़ दुनिया के लगभग हर बड़े और ताक़तवर देश का समर्थन है.

ये साफ़ है कि भारत अब उस भूमिका में है कि जिस मंच पर वो उतरेगा उसमें शक्ति संतुलन प्रभावित हो जाएगा… अमेरिका, यूरोपीय देश, रूस, चीन सब ये बात समझते हैं… यही वजह है कि भारत को अब कोई भी हल्के में लेने का साहस नहीं करता.

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