July 7, 2024
Supreme Court

तो क्या रद्द हो सकता है सूरत लोकसभा में बीजेपी प्रत्याशी का निर्विरोध निर्वाचन, जानें क्यों सुप्रीम कोर्ट ने मांगी गाइडलाइन

सुप्रीम कोर्ट की याचिका में सूरत लोकसभा चुनाव में नोटा के होने के बावजूद निर्विरोध चुनाव पर आपत्ति।

SC on NOTA guidelines: सुप्रीम कोर्ट ने नोटा (NOTA) का विकल्प अधिकतर वोटर्स द्वारा चुने जाने की स्थिति में चुनाव आयोग की गाइडलाइन मांगी है। कोर्ट ने कहा कि अगर किसी भी सीट पर नोटा (NOTA) को सर्वाधिक वोट मिला हो तो ऐसी स्थिति में चुनाव आयोग की गाइडलाइन क्या है? सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार को नोटा संबंधी याचिका पर सुनवाई की गई।

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच द्वारा सुनी जा रही याचिका में मांग की गई है कि अगर किसी भी लोकसभा या विधानसभा सीट पर नोटा का विकल्प सबसे अधिक लोगों ने चुना है तो उस चुनाव को शून्य घोषित किया जाना चाहिए। याचिका जाने माने मोटिवेशनल स्पीकर शिव खेड़ा ने दायर की है। सुनवाई करते हुए भारत के मुख्य न्यायाधीश ने चुनाव आयोग को नोटिस जारी कर इस बाबत गाइडलाइन मांगी है। कोर्ट ने आयोग को नोटा संबंधी नियमों की जांच का आदेश दिया है। बेंच ने कहा कि हम जांच करेंगे। नोटिस जारी करेंगे। यह याचिका इलेक्शन प्रॉसेस के बारे में भी है।

निर्विरोध निर्वाचन के खिलाफ भी है यह याचिका

याचिकाकर्ता शिव खेड़ा की ओर से बहस कर रहे सीनियर एडवोकेट गोपाल शंकरनारायण ने सूरत लोकसभा सीट का उदाहरण देते हुए कहा कि केवल एक कैंडिडेट की उपस्थिति के कारण कोई चुनाव नहीं हुआ था। यदि कोई अन्य उम्मीदवार किसी पदधारी का विरोध नहीं करता है या अपनी उम्मीदवारी वापस नहीं लेता है, तब भी मतदान होना चाहिए क्योंकि नोटा का विकल्प मौजूद है।

याचिका में यह भी मांग किया गया है कि अगर कोई कैंडिडेट नोटा से भी कम वोट पाता है तो उसे कम से कम पांच साल तक चुनाव लड़ने पर रोक लगाया जाना चाहिए।

क्या है नोटा (NOTA)?

नोटा (NOTA) यानि इनमें से कोई नहीं (none of the above)। अगर किसी भी चुनाव में मतदाताओं को चुनाव लड़ने वाला कोई प्रत्याशी पसंद नहीं है तो वह NOTA का प्रयोग कर सकता है। दरअसल, 2004 में सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई थी। यह उन मतदाताओं के लिए था जो जिनको कोई भी प्रत्याशी पसंद नहीं आने पर भी कोई विकल्प नहीं था। या तो वह किसी न किसी प्रत्याशी को वोट करे या वोट देने ही नहीं जाए। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट में एक विकल्प की मांग की गई।

2013 में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर नोटा (NOTA) विकल्प मिला। आपको कोई उम्मीदवार पसंद नहीं आता है तो उसे आप वोट न देकर नोटा बटन दबा सकते हैं। आपके वोट की गिनती भी होगी और आप मजबूरीवश किसी को भी वोट भी नहीं देंगे। दरअसल, नोटा ने मतदाताओं के लिए उपलब्ध उम्मीदवारों के प्रति असंतोष व्यक्त करने और अपना विरोध दर्ज कराने के विकल्प के रूप में काम किया है।

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