जबलपुर (मध्य प्रदेश). ज्योर्तिमठ-बद्रीनाथ व शारदा-द्वारका पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती (Shankaracharya Swami Swaroopanand Saraswati) को सोमवार को पूरे विधि-विधान से भू-समाधि दी गई। शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती रविवार को ब्रह्मलीन हुए थे। उन्हें मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर के झोतेश्वर स्थित परमहंसी गंगा आश्रम में हिंदू परंपरा के अनुसार भू समाधि दी गई। शंकराचार्य के अंतिम दर्शन के लिए उनकी पार्थिव देह आश्रम के गंगा कुंड स्थल पर रखी गई थी। अंतिम दर्शन के लिए हजारों की संख्या में भक्त पहुंचे हुए थे।
नए शंकराचार्याें का भी ऐलान
ज्योतिर्मठ बद्रीनाथ और शारदा पीठ द्वारका के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती (Shankaracharya Swaroopanand saraswati) के ब्रह्मलीन होने के बाद उनके उत्तराधिकारियों के नाम की घोषणा कर दी गई है। यह घोषणा सोमवार को स्वरूपानंद सरस्वती के ब्रह्मलीन शरीर के सामने की गई है। स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद जी को ज्योतिर्मठ बद्रीनाथ और स्वामी सदानंद जी को द्वारका शारदा पीठ का शंकराचार्य घोषित किया गया है।
वीवीआईपी से लेकर आमजन पहुंचे अपने सर्वाेच्च संत को अंतिम विदाई देने
शंकराचार्य के अंतिम दर्शन के लिए छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह के साथ-साथ कई मंत्री और विधायक झोतेश्वर आश्रम पहुंचे थे। इसके अलावा भारी संख्या में दूसरे मठों के साधु-संत भी पहुंचे थे। व्यवस्था के लिए भारी मात्रा में फोर्स तैनात किया गया था।
पूर्व सीएम कमलनाथ और कांग्रेस के कई नेता दर्शन के लिए पहुंचे
मध्य प्रदेश के पूर्व सीएम कमलनाथ, पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी और विधायक जयवर्धन सिंह सुबह करीब 11 बजे- जगतगुरू के समाधि स्थल पर पहुंचे। जहां उन्होंने शंकराचार्य के किए अंतिम दर्शन किए। इस मौके पर कमलनाथ ने कहा-शंकराचार्य जी देश हित में हमेशा अपनी बात बेबाकी से रखते थे। उनकी बात को सुना भी जाता था। उनका इस तरह से जाना, बहुत बड़ी क्षति है। हमे भी उनका मार्गदर्शन हमेशा मिला।
आश्रम से 2 किलोमीटर पहले ट्रैफिक को रोक गया
स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के पूरे देश में लाखों अनुयायी हैं, उनके अंतिम दर्शन के लिए हजारों की संख्या में भक्त आश्रम पहुंच थे। जिसे देखते हुए भारी संख्या में पुलिस बल तैनात किया गया। वहीं भीड़ को देखते हुए आश्रम से 2 किलोमीटर पहले झोतेश्वर गांव के प्रवेश द्वारा पर ही प्रशासन ने ट्रैफिक को रोक दिया था।
पोथीराम उपाध्याय से ऐसे बने शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती
शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का जन्म 2 सितंबर, 1924 को मध्य प्रदेश के सिवनी जिले के दिघोरी गांव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके बचपन का नाम पोथीराम उपाध्याय था। 9 साल की उम्र में उन्होंने घर छोड़ धर्म की यात्रा शुरू कर दी थी। इस दौरान वो उत्तर प्रदेश के काशी पहुंचे और ब्रह्मलीन श्री स्वामी करपात्री महाराज से शास्त्रों की शिक्षा ली। स्वरूपानंद सरस्वती को हिंदुओं का सबसे बड़ा धर्मगुरु रहे हैं। स्वामी स्वरूपानंद आज से 72 साल पहले यानी 1950 में दंडी संन्यासी बनाए गए थे। ज्योर्तिमठ पीठ के ब्रह्मलीन शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती से दण्ड सन्यास की दीक्षा ली और स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती नाम से जाने जाने लगे। उन्हें 1981 में शंकराचार्य की उपाधि मिली।