- एनजीटी ने यूपी के मुख्य पर्यावरण अधिकारी पर लगाया जुर्माना
- वाराणसी में गंगा जल पर पांच साल तक हुआ शोध
- कैंसर, पार्किंसन, डिमेंशिया, लकवा जैसी बीमारियों से ग्रसित हो रहे लोग
- बनारस में तीन लोगों की कैंसर से मौत, अन्य का चल रहा इलाज
डॉ अजय कृष्ण चतुर्वेदी
वाराणसी: यहां मां गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के लिए 1985 से प्रयास जारी है। अरबों- खरबों रुपये गंगा जल में बह गए। लेकिन गंगा को अब तक प्रदूषणमुक्त नहीं किया जा सका। प्रदूषणमुक्ति तो दूर अब जीवन दायनी गंगा के जल, कैंसर, पार्किंसन, डिमेंशिया, लकवा, मानषिक बीमरियों का कारक बनता जा रहा है। ये तब है जब 2014 में नरेंद्र मोदी जब वाराणसी से सांसद बने तब उन्होंने नमामि गंगे परियोजना लॉंच की। बावजूद इसके गंगा को प्रदूषणमुक्त नहीं किया जा सका। उल्टे गंगा जल से तमाम घातक और जानलेवा बीमारियों ने लोगों को कब्जे में लेना शुरू कर दिया। ये सब गंगा में गिर रहे सीवेज और अन्य गंदगी के लगातार गिरने के चलते है। गंगा प्रदूषण की स्थिति को एनजीटी ने गंभीरता से लेते हुए यूपी के मुख्य पर्यावरण अधाकारी पर जुर्माना लगा दिया है।
वाराणसी में गंगा जल पर पांच साल से चल रहा शोध
गंगा की हालत पर बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के न्यूरोलॉजी विभाग के अध्यक्ष प्रो विजय नाथ मिश्र की अगुवाई में पांच साल पहले शोध शुरू किया। विगत दिनों ने प्रो मिश्र ने अपने शोध की जो रिपोर्ट बताई है, वो बेहद गंभीर है। प्रो मिश्र के मुताबिक गंगा में जा रहे सीवेज और अन्य गंदगी के चलते गंगा जल मानव शरीर के लिए खतरनाक हो गया है। आलम ये है कि गंगा के 25 किलोमीटर की परिधि में रहने वाले कैंसर, लकवा, पार्किंसन, डिमेंशिया आदि गंभीर बीमारियों के शिकार हो रहे हैं।
डॉ मिश्र बताते हैं कि ये शोध सामने घाट, नगवां, तुलसी घआट, आदिकेशव घाट, भैंसासुर घाट, मणिकर्णिका घाट और प्रयागराज से बक्सर तक से गंगा जल का नमूना एकत्र किया गया। उन नमूनों के परीक्षण से पता चला कि इसमें लेड, आर्सेनिक, कॉपर, एल्यूमिनियम जैसे तत्वों की मात्रा अधिक हो गई है। परिणास्वरूप जलजनित रोग होने लगे हैं। यहां तक कि गंगा से निकलने वाली मछलियों का सेवन भी घातक हो गया है। इसके पीछे कारण बताया जा रहा है कि इन मछलियों में भी खतरनाक तत्व पाए जा रहे हैं।
इन घाटों के किनारे गंगाजल में जहरीले तत्व
शोध में पाया गया कि गंगा-वरुणा के संगम स्थल आदिकेशव घाट पर प्रचुर मात्रा में जहरीले तत्व हैं। इसके अलावा भैंसासुर घाट, मणिकर्णिका घाट, भदैनी, अस्सी आदि घाटों पर कैंसर के कारक तत्व मिल रहे हैं। आलम ये है कि इन घाटों के इर्द-गिर्द के रहवासी कैंसर की चपेट में आ रहे हैं। आदिकेसव घाट किनारे भी यही हाल है। प्रो मिश्र बताते हैं कि यहां कैंसर से तीन लोगों की मौत हो चुकी है। शेष का इलाज चल रहा है। हालत नाजुक है। गंगा की तलहटी में लेड, आर्सेनिक, कॉपर, एल्यूमीनियम धातु की अधिकता ज्यादा है।
इन स्थानों से लिए गए गंगा जल के नमूने
बनारस में सामने घाट, नगवां, तुलसी घाट, आदिकेशल, भैंसासुर घाट, मणिकर्णिका के अलावा फाफामऊ से बक्सर, संगम स्थल, चुनार और मिर्जापुर मरीज, गंगाजल, मिट्टी और मछलियों के नमूने लिए गए। इन नमूनों का परीक्षण बीएचयू और आईआईटीआर लखनऊ में कराया गया।
- 250 से अधिक लिए गए गंगा जल के नमूने
- 56 नमूने गंगा मिट्टी के लिए गए
- 74 प्रतिशत लोग डिमेंशिया के शिकार पाए गए
- 82 फीसद लोग पार्किंसन की गिरफ्त में पाए गए
युवा भी इन रोगों की चपेट में
प्रो मिश्र बताते हैं कि यूं तो आमतौर पर डिमेंशिया बुजुर्गों को होती है, लेकिन गंगा के 25 किलोमीट के दायरे में रहने वाले 50 वर्ष आयुवर्ग के लोगों में भी डिमेंशिया के लक्षण दिख रहे हैं। यही नहीं 40 साल से अधिक उम्र वाले पार्किंसन की गिरफ्त में है।
हैवी मेटल्स से सेंट्रल नर्वस सिस्टम प्रभावित
प्रो मिश्र बताते हैं कि हैवी मेटल्स से सेंट्रल नर्वस सिस्टम प्रभावित होता है। इससे चक्कर आना, बेहोशी और चलने में दिक्कत महसूस होती है। प्रदूषित जल के सेवन से गैस, कब्ज, पीलिया, लीवर में सूजन, अपच, की दिक्कत होने लगती है। लेड, कॉपर, आर्सेनिक गुर्दा, हृदय और लीवर कैंसर का कारण बन सकता है। भारी मेटल के कारण मधुमेह, हर्ट अटैक हो सकता है। सुनने की क्षमता प्रभावित हो सकती है। खून से संबंधित कई बीमारियों के होने की आशंका से भी इंकार नहीं किया जा सकता। मैग्नीशियम, सल्फेट, कार्बोनेट से टायफायड, पीलिया की समस्या होती है। फ्लोराइड की अधिकता से दांत और जोड़ कमजोर होते हैं।
गंगा जल पर गत पांच साल से शोध चल रहा है। गंगा किनारे प्रयागराज से वाराणसी तक गंगा तटवासियों में न्यूरोलॉजिकल डिजीज ज्यादा मिल रही है। गंगा के लगभग सभी घाट के समीप एक या दो व्यक्ति कैंसर पीड़ित मिल जाएंगे। ऐसे में गंगा बेसिन क्षेत्र में बड़े शोध की आवश्यकता है।
प्रो विजय नाथ मिश्र, विभागाध्यक्ष न्यूरोलॉजी, बीएचयू
एनजीटी ने यूपी के मुख्य पर्यावरण अधिकारी पर लगाया जुर्माना
बनारस में गंगा को प्रदूषण से बचाने के लिए दोषी लोगों व संस्थाओं पर पर्यावरणीय मुआवजा लगाने संबंधी राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) के पूर्व में दिए आदेश का पालन न करने के चलते एनजीटी ने यूपी के मुख्य पर्यावरण अधिकारी पर दस हजार रुपये का जुर्माना लगाया है।
अधिकरण, वाराणसी के विभिन्न स्थानों पर गंगा में घरेलू और औद्योगिक अपशिष्ट जल छोड़े जाने के जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान ये दंड दिया है। बता दें कि इससे पूर्व इसी साल 16 फरवरी को अधिकरण ने वाराणसी नगर निगम की रिपोर्ट पर गौर फरमाया था। निगम ने रिपोर्ट में बताया था कि प्रतिदिन 10 करोड़ लीटर (एमएलडी) अपशिष्ट जल गंगा में छोड़ा जा रहा है। तब उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) ने कहा था कि चार सप्ताह के भीतर दोषी संस्था या लोगों पर पर्यावरणीय मुआवजा (ईसी) लगाया जाएगा।
अध्यक्ष न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव की पीठ ने चार अप्रैल को पारित एक आदेश में कहा कि बोर्ड ने दो अप्रैल को एक नई रिपोर्ट दायर की थी। पीठ में न्यायिक सदस्य न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल और विशेषज्ञ सदस्य ए सेंथिल वेल भी शामिल हैं। पीठ ने कहा कि नई रिपोर्ट राज्य के सर्किल- 6 (वाराणसी, गोरखपुर, आजमगढ़ और बस्ती) के मुख्य पर्यावरण अधिकारी, घनश्याम के स्तर से जारी की गई थी। इसने कहा कि बोर्ड के यह कहने के बावजूद कि चार सप्ताह के भीतर जुर्माना लगाया जाएगा, संबंधित प्राधिकारी कार्रवाई करने में विफल रहे। पीठ ने कहा कि पूछे जाने पर यूपीपीसीबी ने कहा कि अधिकरण के फैसले से संबंधित अधिकारियों को विधिवत अवगत करा दिया गया है।
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