अपने हुए बेगाने…वृद्धावस्था में अपनों ने साथ छोड़ा तो वृद्धाश्रम में एक दूसरे का हाथ थाम दे रहे एक दूसरे को सहारा

गोरखपुर। एक बेटे की चाह में हर मंदिर, मस्जिद, दरगाह, पीर-पैगम्बर की दर पर मत्था टेका, उसकी खुशियों के लिए अपना पूरा-जीवन व सर्वस्व न्यौच्छावर कर दिया, जिसकी उम्मीदों व सपनों की बगिया को अपने पसीने की एक-एक बूंद से सींचा आज उम्र की ढलान पर वहीं इस कदर बदल गया अपने ही बेगाने हो गए। यहीं दर्द गोरखपुर-बस्ती मंडल के हर वृद्धा आश्रम में रह रहे बुजुर्ग का है। इन वृद्धा आश्रम में रह-रहे बुजुर्ग एक-दूसरे के दुख-सुख के साथी और हमदर्द है जो आपस में अपना दुख बांटकर बची हुई जिन्दगी में खुशियों के रंग भर रहे है। यहां न तो उनके बीच जाति-पाति की खाई है न मजहब की दीवार। उनके अंदर कुछ है तो वह है अपनों द्वारा दिए गए दर्द का संमदर और साथियों का प्यार व कुछ कर गुजरने का आत्मविश्वास।

गोरखपुर-बस्ती मंडल में संचालित विभिन्न वृद्धाश्रम में लगभग 500 बुजुर्ग महिला पुरुष रहते है जो यहां परिवार द्वारा त्याग दिए गए है यहा उनका कोई वारिश नहीं है। इन आश्रमों में उनके खान-पान, देखभाल, स्वास्थ्य आदि की सुविधा रहती है। लेकिन फिर भी उन्हें अपनों की कमी खलती रहती है। यहां रहने वाले बुजुर्ग एक-दूसरे के गम को बांटने का भरसक प्रयास करते है लेकिन अपनों द्वारा दिए गए घाव जेहन में आते ही उनकी आंखों से आंसू बरबस ही छलक आते है।

अब तो यहीं मेरा घर-परिवार है

सिद्धार्थनगर जिले में संचालित अपना घर में बांसी क्षेत्र के एक गांव के रहने वाले 66 वर्षीय बुजुर्ग ने बताया कि मेरा तीन बेटों का भरा-पूरा परिवार है। कस्बे में छोटी सी किराने की दुकान चलाकर मैनें जीवनभर उनका पालन पोषण किया लेकिन उम्र बढ़ने के साथ-साथ शरीर ने जबाव देना शुरू कर दिया तो दुकान की जिम्मेदारी बेटे को सौंप दी। कुछ दिन तो सब ठीक रहा लेकिन दिन बेटे ने कहा मैं तुम्हारा खर्च नहीं उठा सकता है, तुम्हे बैठकर खिला नहीं सकता अपनी व्यवस्था देख लो। यह सुनते ही मानों शरीर सुन्न सा हो गया जिसके उम्रभर मरता रहा आज वह इस तरह की बात कर रहा है। मैनें उसी पल घर छोड़ दिया और भटकते हुए यहां पहुंचा। यहां पिछले एक साल से रह रहा हूं। अब यहीं मेरा घर-परिवार है। इन्हीं लोगों के साथ जीना है। खुदा ऐसी औलाद दुश्मन को भी नसीब ना करें।

जब औलाद की थी सबसे ज्यादा जरूरत तभी मुंह मोड़ लिया

संतकबीरनगर जिले के सियरा सांथा में संचालित एक वृद्धाश्रम में रह रहे बुजुर्गों की भी यही स्थिति है। यहा रहेजीवलाल यादव ने बताया जिन बच्चों की खुशी के खातिर दिन-रात किए रहा आज वहीं हमें इस तरह छोड़ जाएंगें यह सोचा भी न था। जिस उम्र में औलाद की सबसे ज्यादा जरूरत महूसस होती है उसी वक्त पर ही उन्होंने मुंह मोड़ लिया। यहां रहने वाले नंदलाल, राममिलन, गंूगा देवी, मुकुला देवी, प्रभा देवी, मीना देवी समेत सभी बुजुर्ग अपनी औलादों की बेरुखी का रोना रो रहे है, फिर भी उनके दिल में उनकी खुशियों की चिंता है।

बेटे की बात से लगी ठेस तो छोड़ दिया घर

देवरिया वृद्धाश्रम में एक साल से रही एक बुजुर्ग महिला ने बताया कि मेरे तीन बेटे है, सभी बाहर कमाते है। एक दिन फोन पर बडे़ बेटे ने ऐसी बात कह दी कि मुझे उनसे नफरत सी हो गई। उसी दिन मैनें घर छोड़ दिया। वहीं रह रही एक अन्य बुजुर्ग महिला चार साल से यहां रह रही है जिन्होंने बहू की प्रताड़ना से घर छोड़ दिया। वहीं एक बुजुर्ग बेटे के नशे की आदत व बहू की प्रताड़ना से आजिज आकर दो साल पहले घर छोड़कर यहां चले आए। वहीं एक अन्य बुजुर्ग ने बताया कि उनके बेटे ही उनके जान के दुश्मन बन गए है। जिससे उन्होंने घर छोड़ दिया।

परिवार में मेरे लिए नहीं थी जगह

महराजगंज के फरेंदा में संचालित एक वृद्धा आश्रम में रह रहे बुजुर्ग ने बताया कि अपने जीवन की पाई-पाई अपने बच्चों के भविष्य बनाने में खर्च कर दिया। लेकिन मुझे क्या पता था कि एक दिन उनके ही घर-परिवार पर मैं बोझ बन जाऊंगा और वहां मेरे लिए ही जगह नहीं रहेगी।

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