गंगा सप्तमी विशेषः काशी में जीवन और मोक्ष दायनी मां गंगा खुद खतरे में, इंसान व जीव जंतु भी संकट में

  • बीएचयू के पर्यावरण विभाग का शोध
  • प्लास्टिक कचरे का प्रभाव, गंगा में मिल रहे घातक तत्व व रसायन
  • कानपुर, प्रयागराज से ज्यादा काशी में है गंगा प्रदूषण
  • जलीय जंतुओं में मिल रहे माइक्रो प्लास्टिक के अंश
  • मानव जीवन पर असर को लेकर शोध जारी

Dr.Ajay Krishna Chaturvedi
वाराणसी. मां गंगा जिन्हें हम जीवन दायनी, मोक्ष दायनी के नाम से भी पुकारते हैं। राजा भगीरथ, कठिन तपस्या और अथक प्रयास के बाद अपने पुरखों को तारने के लिए ही मां गंगा को धरती पर लाए थे। शिव की जटा से होते हुए गंगा सप्तमी को ही मां का धरा पर अवतरण हुआ था। तब से अब तक मां गंगा हम सभी धरतीवासियों को जीवन संवारने से लेकर उन्हें मोक्ष प्रदान करती आ रही हैं। लेकिन अब वो गंगा (Holy Ganges Pollution) खुद खतरे में हैं। कम से कम काशी में तो मां गंगा का जल बेहद खतरनाक हो चला है।

करीब दो साल के शोध के बाद ये पाया

हाल ही में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के पर्यावरण विभाग ने करीब दो साल के शोध के बाद ये पाया है कि वाराणसी में गंगा, प्रयागराज और कानपुर से कहीं ज्यादा प्रदूषित (Pollution of Ganges) हो चुकी हैं। इस प्रदूषण का मुख्य कारक प्लास्टिक कचरा है। आलम ये कि गंगा में ही अपना पूरा जीवन व्यतीत करने वाले जलीय जीवों का जीवन संकट में आने के आसार हैं। कम से कम मछलियों में तो माइक्रो प्लास्टिक के कण मिले हैं जो काफी घातक संकेत है।

शोध करने वाले वैज्ञानिको का मत है कि जब मछलियों में माइक्रो प्लास्टिक कण मिले हैं तो इसे अपना आहार बनाने वालों के शरीर में भी इसका कण जा रहा है जिससे उनका भी जीवन संकट में है। हालांकि यह शोध अभी जारी है और वैज्ञानिक कहते हैं कि माइक्रो प्लास्टिक का मानव शरीर पर क्या असर होगा इस मसले पर अभी शोध जारी है।

वाराणसी से कानपुर तक गंगा जल पर हुआ शोध

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के पर्यावरण विभाग के असोसिएट प्रोफसर डॉ कृपा राम बताते हैं कि यह वाराणसी से प्रयागराज होते कानपुर तक गंगा जल में माइक्रो प्लास्टिक की उपलब्धता विषय पर विगत दो साल शोध किया गया। इसमें पाया गया कि कानपुर और प्रयागराज से कहीं ज्यादा माइक्रो प्लास्टिक बनारस में गंगा के जल (Holy Ganges Pollution) में मिला। डॉ कृपा राम कहते हैं कि कानपुर की तुलना में बनारस के गंगा जल में माइक्रो प्लास्टिक की मात्रा दोगुनी से ज्यादा है।

कहां से आ रहा ये माइक्रो प्लास्टिक

बनारस जहां न कोई बड़ी इंडस्ट्री है, न कल-कारखाने, फिर भी गंगा के जल में कानपुर से ज्यादा माइक्रो प्लास्टिक की उपलब्धता चकित करने वाली हो सकती है, पर हकीकत ये है कि ये माइक्रो प्लास्टिक सीवेज से ही हो कर गंगा में जा रहे हैं। डॉ कृपा राम बताते हैं कि प्लास्टिक के बारे में ये तो सभी जानते हैं कि ये नष्ट नहीं होता। ऐसे में जो सीवेज गंगा में गिर रहा है और उसके साथ जो प्लास्टिक कचरा आ रहा है वो गंगा की सेहत बर्बाद (Holy Ganges Pollution) करने के लिए पर्याप्त है। सबसे चिंताजनक बात ये है कि वो गंगा जो अपने घावों को खुद दुरुस्त करने की क्षमता रखती हो वो भी इसका इलाज नहीं कर पा रही है। ऐसे में ये कहा जा सकता है कि गंगा में प्लास्टिक प्रदूषण का खतरा हद से ज्यादा हो चुका है।

मानव जीवन पर खतरा

डॉ कृपा राम कहते हैं कि माइक्रो प्लास्टिक के कण गंगा में पाई जाने वाली मछलियों में मिला है। इतना ही नहीं जिन खेतों में किसान खेती करते हैं उसकी मिट्टी में भी माइक्रो प्लास्टिक के कण मिले हैं। हालांकि अभी ये घातक कणों के फसलों में मिलने की पुष्टि नहीं हुई है, फिर भी ये कहा जा सकता है कि सूक्ष्म ही सही पर विभिन्न फसलों में भी इसके कण हो सकते हैं। पर इस पर अभी कोई सटीक जानकारी नहीं है।

अलबत्ता वैज्ञानिकों ने ये जरूर पाय है कि दूध में तो माइक्रो प्लास्टिक के कण मौजूद हैं। इसकी पुष्टि हो चुकी है। लिहाजा अगर आप शाकाहारी हैं तो दूध और अन्य अनाज तथा अगर मांसाहारी हैं और अगर मछली का इस्तेमाल करते हैं तो उसमें भी माइक्रो प्लास्टिक के कण हैं। इस लिहाज से आज हमार आहार भी पूरी तरह से प्रदूषित है। देर-सबेर इसका खतरा मानव जीवन पर भी पड़ना स्वाभाविक है।

वाराणसी में गंगा जल में माइक्रो प्लास्टिक की मात्रा अलार्मिंग

गंगा में हेवी मेटल्स भी मिले हैं। इनकी संख्या ज्यादा पायी गई है। साथ ही जो हम सभी लोग धड़ल्ले से इस्तेमाल करते हैं, कर रहे हैं, माइक्रो प्लास्टिक हैं जो खुली आंखों से दिखते भी नहीं हैं। ये माइक्रो प्लास्टिक का कंसंट्रेशन ज्यादा बढ़ गया है। खास तौर से वाराणसी में हम लोगों ने जो जल के नमूने लिए उसमें माइक्रो प्लास्टिक की मात्रा का अलार्मिंक स्टेज तक बढ़ा हुआ पाया गया है। डब्ल्यूएचओ विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी प्लास्टिक कचरे को लेकर चेताया है। माइक्रो प्लास्टिक से अतिसूक्ष्म कण काफी खतरे का संकेत है।

पेयजल, मिट्टी तक में माइक्रो प्लास्टिक का असर

शरीर के विभिन्न अंगों और खास तौर पर रक्त में इसके कण पाए गए हैं। ऐसे में ये घातक है। अब ये जानने की कोशिश की जा रही है कि ये कण आ कहां से रहे हैं। फूड ग्रेन्स में मिलने की जानकारी नहीं है। फिर भी ये अलार्मिंग है कि मानव शरीर में अगर ये मिल रहा है तो कहीं न कहीं से आ तो रहा ही है। जैसे अगर हम मछली खाते हैं तो वो तो स्पष्ट है। पर शाकाहारी लोगों में कैसे आ रहा है उसका पता लगाना है, इस पर कार्य जारी है। जल्द ही इसका भी पता चल जाएगा।

लेकिन इतना तो है कि पहले ही ये साबित हो चुका है कि दूध में ये विषैले कण तो हैं। अब ये संभव है कि जिन पशुओं के दूध का इस्तेमाल हम करते हैं वो पशु भी तो प्लास्टिक के कचरे को भोज्य पदार्थ के रूप में इस्तेमाल कर ही रहे हैं, भले ही वो पूरी तरह से उनके शरीर में घुलता य पचता न हो पर उसके सूक्ष्म कण तो आ ही जाते होंगे, लिहाजा ये कहा जा सकता है कि दूध भी घातक हो सकता है।

माइक्रो प्लास्टिक भविष्य के लिए घातक

ये माइक्रो प्लास्टिक बहुत घातक है ऐसे में प्लास्टिक के प्रोडक्शन को रोकना ही होगा। इस पर सरकार को भी ध्यान देना होगा। लेकिन ये हम सभी नागरिकों की भी जिम्मेदारी है। हमें भी पीछे लौटना होगा और खुद से प्लास्टिक के कैरीबैग को नकारना होगा।

गर्म खाद्य पदार्थ पेपर कप या पेपर प्लेट में न खाएं

पेपर कप प्लास्टिक कोटेड होता है जिससे चाय,कॉफी या कोई तरल पदार्थ न पीएं, क्योंकि इससे ये कण शरीर में जाते हैं। लिहाजा अपना जीवन बचाने के लिए ही सही पर प्लास्टिक का इस्तेमाल न करें। खास तौर पर गर्म खाद्य पदार्थ को पेपप कप या पेपर प्लेट में खाने से बचें।

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