PM Modi के संसदीय क्षेत्र में आमजन की लड़ाई लड़ रहे डॉ.ओम शंकर की BHU में आंदोलन, निलंबन और नजरबंदी की कहानी…

Right to Health: महामना पंडित मदन मोहन मालवीय की कर्म स्थली जिसे हम महामना की बगिया के नाम से भी जानते हैं, वहां इन दिनों झूठ, भ्रष्टाचार, कदाचार का बोलबाला है। जिस बगिया को महामना ने अपने खून पसीने से सींचा। बच्चों को उच्च शिक्षा के साथ ही सदाचार, मानवता, प्रकृति प्रेम का पाठ पढ़ाया। इसके लिए वो खोज-खोज कर विषय विशेषज्ञ लाते रहे। उन्होंने आजादी से पूर्व देश भर के लोगों के आगे झोली फैला कर इस विशाल विद्या मंदिर की स्थापना की। ब्रिटिश काल में भी ब्रितानियों के नाको चने चबवा दिए। आजादी की लड़ाई में जिस विश्वविद्यालय का अपना अनुपम योगदान रहा। वहां आज सब कुछ बर्बादी के कगार पर पहुंच गया है। यहां सिर्फ और सिर्फ झूठ ही शेष रह गया है।

डेढ दशक से वाराणसी में पृथक एम्स की मांग कर रहे ओम शंकर


एक युवा जो बिहार से आ कर काशी में महामना की बगिया को संवारने में तल्लीन हो जाता है। वो पेशे से हर्ट स्पेशलिस्ट हैं तो हृदय रोग विभाग को दुनिया का नंबर वन बनाने की तमन्ना रखते हैं। जिस अस्पताल में एंजियो प्लास्टी नहीं होती थी वहां आज की तारीख में वो सारी सुविधाएं उपलब्ध हैं जिनके जरिए विश्व स्तरीय चिकित्सा मुहैया कराई जा रही है मरीजों को। ये और कोई नहीं डॉ ओम शंकर हैं।

डॉक्टर साहब ने आज से डेढ दशक पहले वाराणसी में एम्स की मांग की। साथ ही बीएचयू के सर सुंदरलाल चिकित्सालय की स्थिति को देखते हुए उन्होंने इससे अलग एम्स की स्थापना की दलील रखी। इसके पीछे सोच थी कि ये एम्स शहर की सीमा पर हो, जहां पर्याप्त फैलाव मिले ताकि वो सारी सुविधाएं उपलब्ध हो सकें जो एम्स सरीखे अस्पताल को चाहिए। इस मांग के लिए उन्होंने लंबा आंदोलन चलाया। आमरण अनशन किया। उन्हें निलंबित और नजरबंद तक किया गया। उनका प्रमोशन तक लंबित किया गया। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।

अंततः न केवल उनकी बहाली हुई बल्कि उन्हें प्रमोशन भी मिला और सबसे बड़ी बात कि वाराणसी को पृथक नहीं सही पर बीएचयू को अपग्रेड कर एम्स का दर्जा जरूर मिला। ये काशी ही नहीं बल्कि समूचे पूर्वांचल के लिए बड़ी सौगात रही।

दर्जा प्राप्त एम्स से नाखुश थे डॉ ओम शंकर

हालांकि डॉ ओम शंकर ने बीएचयू को एम्स का दर्जा दिए जाने की भी मुखालफत की। उनका तर्क था कि इससे मरीजों को जितना लाभ नहीं मिलेगा उससे ज्यादा भ्रष्टाचार फैलेगा। वहीं एम्स बनने से उसकी सारी व्यवस्था चिकित्सा से लेकर प्रशासनिक और वित्तीय व्यवस्था के लिए स्वतंत्र इंतजाम होगा। हर अधिकारी का दायित्व निर्धारित होगा। वो बार-बार महानगरों के एम्स का उदाहरण देते रहे। लेकिन उस पर किसी ने गौर नहीं किया। ऐसे में उन्होंनि भी इसे भारी मन से स्वीकार जरूर किया पर समय-समय पर वो बराबर पृथक एम्स की मांग उठाते रहे। आज भी वो अपनी मांग पर अड़े हैं।

सर सुंदरलाल अस्पताल की बेहतरी के लिए लड़ते रहे

डॉ ओम शंकर लगातार सर सुंदरलाल चिकित्सालय की बेहतरी के लिए लड़ते रहे। चाहे वो रक्त बैंक का प्रकरण हो, आपात कालीन वार्ड की अनियमितताओं का मुद्दा हो। विभिन्न जाचों का मसला हो या मरीजों को किफायती और गुणवत्तायुक्त दवाओं की उपलब्धता का मसला हो। हर मसले पर उनका संघर्ष जारी रहा। अनेक मामलों में उन्हें सफलता भी मिली। लेकिन इन सब के बावजूद उन्हें उस मुकाम का बेसब्री से इंतजार रहा जिससे यहां आने वाले हर मरीज को विश्व स्तरीय चिकित्सा सुविधा मिल सके। वर्तमान में सर सुंदरलाल चिकित्सालय का कायाकल्प हो चुका है। अब वहां ट्रामा सेंटर है तो सुपर स्पेशियालिटी ब्लाक भी है जहां हर तरह की विश्वस्तरीय चिकित्सा सुविधा उपलब्ध है।

सुपर स्पेशियालिटी ब्लाक में हृदय रोग विभाग को ज्यादा बेड की दरकार क्यों

सर सुंदरलाल चिकित्सालय के हृदय रोग विभाग के पास पहले से ही 47 बेड मुहैया कराए गए थे। सुपर स्पेशियालिटी ब्लाक बनने के बाद चौथा तल हृदय रोग विभाग को मिला। वहीं हृदय रोगियों की बढ़ती संख्या के मद्देनजर बेड की संख्या भी बढ़ाई गई। लेकिन वो बेड विभाग को मिले नहीं, बल्कि उन सभी को डिजिटली लॉक कर दिया गया। इस बीच कोरोना महामारी का कॉल भी आया जिसके बाद पूरी दुनिया में हृदय रोगियों की तादाद में बेतहाशा वृद्धि हुई। सर सुंदरलाल चिकित्साय में भी हृदय रोगियों की कतारें लगने लगीं। डॉ ओम शंकर के मुताबिक कोरोना के पूर्व जहां क्रिटिकल पेशेंट्स की संख्या दहाई भी नहीं पहुंचती थी वो सैकड़ों में पहुंचने लगी।

ये हर कोई देख रहा है कि लोग चलते-फिरते, नाचते-गाते, व्यायाम करते दम तोड़ रहे हैं। बनारस में भी ऐसे कई मामले सामने आए। इन सब को देखने के बाद भी सर सुंदरलाल चिकित्सालय के चिकित्सा अधीक्षक ने डॉ ओम शंकर की मांग को लगातार नजरंदाज किया। ये सिलसिला दो साल तक चलता रहा। बकौल डॉ ओम शंकर नतीजा ये निकला कि बीएचयू के हृदय रोग विभाग में आने वाले मरीजों में करीब चार हजार मरीजों को बेड की अनुपलब्धता के चलते लौटाना पड़ा जिसमें से कइयों की मौत हो गई। मौत के मामले प्रकाश में आने के बाद उनकी जांच भी हई अस्पताल स्तर पर फिर भी बेड से डिजिटल लॉक नहीं खोले गए। उल्टे चिकित्सा अधीक्षक ये दलील देते रहे कि बेड अलाटमेंट मानक के अनुसार ही हुआ है।

डॉ ओम शंकर कहते हैं कि चिकित्सा अधीक्षक को बेड आवंटन का अधिकार ही नहीं है। वो जबरन अपनी बात थोपने में लगे हैं। अपेक्षित आवंटित बेड की खातिर उन्होंने सर सुंदरलाल चिकित्सालय के चिकित्सा अधीक्षक, आईएमएस बीएचयू के निदेशक, विश्वविद्यालय के कुलपति से लेकर प्रधानमंत्री, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री, यहां तक कि राष्ट्रपति को भी पत्र लिखा। लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई।

08 मार्च 2024 से आमरण अनशन की घोषणा की

लगातार दो साल तक बेड के लिए संघर्ष करते-करते आजिज आए डॉ ओम शंकर ने आठ मार्च 2024 से कुलपति आवास के समक्ष आमरण अनशन की नोटिस दी अस्पताल और आईएमएस बीएचयू तथा कुलपति को। नौ मार्च को प्रधानमंत्री का बनारस दौरा था। लिहाजा आनन-फानन में आठ मार्च को ही आईएमएस प्रशासन हरकत में आया और अनशन से पूर्व मेडिकल कॉलेज परिसर में आपात बैठक बुलाई गई। उस बैठक में भी डॉ ओम शंकर ने आवंटित बेड मुहैया कराने के साथ ही चिकित्सा अधीक्षक की बर्खास्तगी की मांग बुलंद की।

बैठक में आईएमएस के डीन और डायरेक्टर ने पूरी बात सुनने के बाद लिखित तौर पर ये आदेश जारी किया कि सुपर स्पेशियालिटी ब्लाक का पूरा चौथा तल और पांचवें तल का आधा हृदय रोग विभाग को दिया जाएगा और ये आदेश 09 मार्च से लागू होगा। (आदेश की प्रति संलग्न है।)

हालांकि आमजन ये समझता रहा कि ये सब महज प्रधानमंत्री के दौरे को लेकर किया जा रहा नाटक है। लेकिन निदेश एसएन शंखवार के लिखित आदेश से ये संभावना बलवती हो रही थी कि अब हृदय रोग विभाग को आवंटित सारे बेड मिल जाएंगे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। डॉ ओम शंकर बताते हैं कि एक सप्ताह बीतने पर उन्होंने रिमाइंडर दिया, उस पर कुछ नहीं हुआ। दो सप्ताह बाद फिर एक रिमाइंडर दिया। उसके बाद भी कार्रवाई नहीं हुई तो उन्होंने फिर से आमरण अनशन का नोटिस दिया।

कुलपति आवास से चैंबर में भेजा गया

प्रो ओम शंकर के कुलपति आवास के समक्ष अनशन का नोटिस मिलने के बाद चीफ प्राक्टर और आईएमएस के निदेशक प्रो शंकर के आवास पर पहुंचे और मनाने का प्रयास किया। लेकिन वो टस से मस नहीं हुए। बता दें कि इस तिथि के अगले दिन ही प्रधानमंत्री को नामांकन के लिए दो दिवसीय दौरे पर आना था, जिसके तहत अगले ही दिन रोड-शो प्रस्तावित था। ऐसे में चीफ प्राक्टर और निदेशक ने उन्हें कुलपति आवास के समक्ष अनशन की अनुमति नहीं दी। ऐसे में उन्होंने अपने चैंबर में अनशन शुरू करने की घोषणा की और वो आमरण अनशन पर बैठ गए।

डॉ ओम शंकर के अनशन पर बैठने के बाद उनके विद्यार्थी, उनके रोगी, रोगियों के परिजन, सामाजिक संस्थाएं, राजनीतिक दल के नेता अनशन स्थल पर पहुंचने लगे। मीडिया में प्रो शंकर को पर्याप्त जगह मिलने लगी।

निदेशक ने प्रो ओम शंकर की मांग को किया खारिज

इस बीच गत शनिवार को चिकित्सा विज्ञान संस्थान के निदेशक प्रो. एस. एन. संखवार ने विश्वविद्यालय के सूचना विभाग के माध्यम से सूचित किया कि बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय स्थित सर सुन्दरलाल चिकित्सालय के कार्डियोलॉजी विभाग को सुपर स्पेश्यलिटी ब्लॉक में 61 बेड आवंटित किये जा चुके हैं, जो कि विभाग को पूर्व में आवंटित बेड से 13 अधिक हैं। राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग के तय मानक अनुसार कार्डियोलॉजी विभाग को पहले से ही निर्धारित संख्या से अधिक बेड आवंटित किये गए हैं, जो उपयोग के लिए पूरी तरह तैयार हैं एवं इन पर किसी भी प्रकार का कोई डिजिटल लॉक नहीं लगा है। इस संबंध में कतिपय समाचार माध्यमों द्वारा किए जा रहे भ्रामक प्रचार की विश्वविद्यालय प्रशासन कड़ी निंदा करता है तथा सभी हितधारकों से अपील करता है कि आमजन के हित में किसी भी तरह के दुष्प्रचार से सावधान रहें।

निदेशक ने हृदय रोगियों की मौत को भी सिरे से खारिज किया

निदेशक के हवाले से जारी विज्ञप्ति में बताया गया कि कतिपय समाचार व ऑनलाइन माध्यमों में ऐसी सूचनाएं भी साझा की जा रही हैं, कि बेड की अनुपलब्धता के कारण 21000 मरीज़ों की मृत्यु हो चुकी है, जो कि पूर्णतः भ्रामक एवं सत्य से परे है। एक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि कार्डियोलॉजी विभाग कुल आवंटित बेड की पूर्ण क्षमता का भी प्रयोग नहीं कर पा रहा है। निदेशक, चिकित्सा विज्ञान संस्थान, ने कहा है कि चिकित्सा अधीक्षक सर सुन्दरलाल चिकित्सालय, तथा विश्वविद्यालय प्रशासन पर लगाए जा रहे आरोपों का कोई आधार नहीं है तथा यह निंदनीय हैं।

व्यवस्था का सवाल खड़ा किया

विज्ञप्ति के माध्यम से निदेशक ने व्यवस्था पर भी सवाल खड़ा किया। कहा कि, सर सुंदरलाल चिकित्सालय में कार्डियोलॉजी विभाग द्वारा अधिक बेड पर अधिपत्य होने से अन्य विभाग राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग के मानक को पूरा नहीं कर पा रहे हैं, जिससे पाठ्यक्रमों के संबंध में आयोग द्वारा विभागों को मिलने वाली आवश्यक मंजूरी प्राप्त करने में तो बाधा आती ही है, मरीजों को चिकित्सा सेवाएं उपलब्ध कराने में भी चुनौतियां आ रही हैं। इस संबंध में यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि अस्पताल पर निरंतर बढ़ते दबाव के चलते किसी भी विभाग को आवश्यकता व तय मानक से अधिक बेड आवंटित करना संभव नहीं है। इसके अतिरिक्त यदि विभाग विशेष में भर्ती मरीज़ों की संख्या अधिक है, तो अन्य विभागों में खाली बेड उपलब्ध कराकर उनके उपचार की व्यवस्था सुनिश्चित की जाती है। इस व्यवस्था का लाभ अक्सर विभिन्न विभाग समय समय पर लेते रहे हैं। ऐसे में संस्थान व चिकित्सालय प्रशासन द्वारा मरीज़ों के हित में वे सभी संभव उपाय किये गए हैं, जिनसे उत्तम व प्रभावी स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने के उद्देश्य की प्राप्ति में कोई बाधा न आए।

डॉ ओम शंकर ने निदेश के दावों को सिरे से खारिज किया

निदेशक के स्तर से पत्र जारी होने के बाद जब यह संवाददाता उनसे मिलने गया और सवाल किया तो उन्होंने निदेशक पर गलत बयानी का आरोप लगाते हुए उनकी सारी बातों को न केवल खारिज किया, बल्कि कहा कि वो आठ मार्च के अपने आदेश का अवलोकन करें तो सारी वस्तुस्थित खुद-ब-खुद स्पष्ट हो जाएगी। उन्होंने यहां तक कहा कि ऐसी गलत बयानबाजी करने वाले निदेशक को अपने पद से तत्काल त्याग पत्र दे देना चाहिए। उन्होंने अपने तर्क के समर्थन में कई साक्ष्य भी उपलब्ध कराए।

चिकित्सा अधीक्षक पर बच्चों के ब्लड में घालमेल का आरोप

उन्होंने वर्तमान चिकित्सा अधीक्षक पर कई आरोप लगाए। कहा कि आईआईटी बीएचयू के करीब आठ सौ विद्यार्थियों ने रक्तदान किया। वो सारे रक्त बेच दिए गए। ब्लड बैंक में उनका कोई रिकार्ड ही नहीं मिला। ये मसला उठा तो उन्हें वहां से हटाया गया, जबकि उन पर दंडात्मक विधिक कार्रवाई होनी चाहिए थी। डॉ शंकर ने बताया कि वर्तमान चिकित्सा अधीक्षक को किसी ने ब्लड बैंक का प्रभारी बनाया भी नहीं था, वो स्वयंभू प्रभारी बन गए थे। बताया कि चिकित्सा अधीक्षक मेडसिन के आदमी हैं और ब्लड बैंक का प्रभारी कोई पैथॉलजी का व्यक्ति ही हो सकता है।

आपात चिकित्सा में नर्सिंग स्टाफ से मारपीट का आरोप

डॉ ओम शंकर ने कहा कि वर्तमान चिकित्सा अधीक्षक को ब्लड बैंक से हटाया तो गया पर उन्हें दंडित करने की बजाय पुरस्कृत कर आपात चिकित्सा वार्ड का प्रभारी बना दिय गया। वहां उन्होंनि नर्सिंग स्टाफ के साथ बदसलूकी की। उन पर मारपीट के आरोप लगे। इस प्रकरण की भी जांच हुई और उन्हें वहां से भी हटाया गया पर दंडित नहीं किया गया। बल्कि सर सुंदरलाल चिकित्सालय का चिकित्सा अधीक्षक बना दिया गया। अब उसका कार्यकाल भी पूरा हो चुका है फिर भी वो पद पर बने हुए हैं।

जांच घर को निजी हाथों में सौंपा

कहा कि सर सुंदरलाल चिकित्सालय का अपना जांच घर है। पर वर्तमान चिकित्सा अधीक्षक ने लखनऊ की एक ब्लैक लिस्टेड कंपनी को जांच का काम सौंप दिया। नतीजा ये कि जांच महंगी हुई साथ ही जांच की गुणवत्ता भी घट गई। उदारण देते हुए कहा कि यहां जांच कराने वाले हर व्यक्ति की किडनी में खराबी आम बात हो गई है। कहा कि इस निजी जांच घर के चलते विशेषज्ञ चिकित्सकों की प्रतिष्ठा और विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा हो गया है।

बीएचयू में धड़ल्ले से काटे व बेचे जा रहे हैं पेड़

प्रो ओम शंकर ने विश्वविद्यालय के कुलपति पर भी गंभीर आरोप लगाए। कहा कि वो सब कुछ जानते हुए चिकित्सा अधीक्षक को संरक्षण दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि इतना ही नहीं इस विश्वविद्यालय के धरोहर वृक्षों को काट कर बेचा जा रहा है। कहा कि एक तरफ जहां पूरी दुनिया ग्लोबल वार्मिंग और क्लाइमेट चेंज के चलते बेहाल है। हर तरफ पौध रोपण की सलाह दी जा रही है। हरियाली बढ़ाने और कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने की बात हो रही है। वहां महामना की बगिया में लगे पेड़ धड़ल्ले से काटे जा रहे हैं। उनकी बिक्री हो रही है।

डॉ ओम शंकर बताते हैं कि बनारस ही नहीं बल्कि समूचे पूर्वांचल या यूं कहें कि पूरे उत्तर प्रदेश में बीएचयू ही रहा जहां चारों तरफ हरियाली थी। महामना ने अपने हाथों से इन पौधो को रोपा था, सींचा था। आज 100 साल से ऊपर हो गए इन वृक्षों को। अब विश्वविद्यालय प्रशासन उन्हें काट कर बेचने में जुट गया है। इसके विरोध में आवाज उठती है तो कहा जाता है कि पुराने पेड़ थे, सूख रहे थे तो कटवा दिया गया। लेकिन हकीकत इससे इतर है। आलम है कि यहां चंदन और सागौन के वृक्षों की कटाई हो गई है।

दो साल से एकेडमिक काउंसिल नहीं, सब मनमाना चल रहा

डॉ ओम शंकर का कहना है कि विश्वविद्यालय में व्याप्त अनियमितता का आलम ये कि करीब ढाई साल होने को आए, यहां एकेडमिक काउंसिल का गठन तक नहीं किया गया। बिना एकेडमिक काउंसिल के कुलपति मनमाने तरीके से विश्वविद्यालय को संचालित कर रहे हैं। मनमाने तरीके से नियुक्तियां हो रही हैं और मनमाना वेतन आवंटित किया जा रहा है। उन्होंने यहां तक आरोप लगाया कि लोकसभा चुनाव चल रहा है इस दौरान भी उन्होंने आदर्श आचार संहिता में कुछ नियुक्तियां की हैं।

देश के हर नागरिक को मिले चिकित्सा एवं स्वास्थ्य का अधिकार

डॉ ओम शंकर पिछले दो साल से न केवल हृदय रोग विभाग के लिए आवंटित बेड की मांग कर रहे हैं, बल्कि वो देश के सभी राजनीतिक दलों से शिक्षा और चिकित्सा एवं स्वास्थ्य के कानूनी अधिकार की मांग भी कर रहे हैं। उनका कहना है कि मौजूदा समय में आम आदमी की सेहत और आर्थिक स्थिति के जो हालात हैं और इसके लिए जो बजट एलाट होता है वो अत्यंत न्यूनतम है। लिहाजा चिकित्सा एवं स्वास्थ्य तथा शिक्षा का कानूनी अधिकार देश की जनता को दिया जाना अनिवार्य हो चला है।

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