डॉ अजय कृष्ण चतुर्वेदी
वाराणसी. लोकसभा चुनाव के तहत दो चरण के मतदान पूरे हो चुके हैं। तीसरे चरण का मतदान 7 मई को है। इस भीषण गर्मी में लाख कोशिशों के बावजूद मतदान प्रतिशत बढ़ना तो दूर 2019 से नीचे गिर रहा है। फिर भी ये अपील करता हूं कि मतदाता घरों से निकलें, सुबह 10 बजे तक ही बंपर वोटिंग करें, ताकि उन्हें संविधान से मिले अधिकार का प्रयोग कर सकें। अपने हक के लिए मतदान करें, क्योंकि मतदान नहीं करने की सूरत में आपके पास चुनी गई सरकार पर अंगुली उठाने का हक नहीं।
BJP को अपने काम और घोषणा पत्र से भी सरोकार नहीं
बीजेपी जिसने 10 साल तक इस देश की सियासत पर राज किया है। देश की सर्वोच्च सत्ता पर काबिज रही। इस दौर में ऐसा नहीं कि बीजेपी ने कुछ भी नहीं किया, या जो किया गलत ही किया है। बावजूद इसके पार्टी का शीर्ष नेतृत्व हो या पूरी पार्टी अपने 10 साल की उपलब्धियों का प्रचार प्रसार नहीं कर रही है। यहां तक कि अपने घोषणा पत्र पर भी चर्चा नहीं कर रही है।
BJP अभी भी कांग्रेस को निशाना बना रही है। राहुल गांधी, सोनिया गांधी, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी को लेकर हमले बोल रही है। इंडिया गठबंधन के घटक दलों पर परिवारवाद, भ्रष्टाचार का आरोप लगा रही है। दो-दो मुख्यमंत्री जेल भेज दिए गए हैं, कथित भ्रष्टाचार का हवाला दे कर। कांग्रेस सहित अन्य पार्टियों के बड़े नेताओं को बीजेपी या इंडिया गठबंधन में शामिल कर लिया गया है, ये वो नेता हैं जिन पर कल तक भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे थे। ईडी, सीबीआई, आयकर उन्हें घेर रहे थे। पर अब वो सारी कार्रवाई शिथिल पड़ गई है। वो बीजेपी के वाशिंग मशीन से धुल गए हैं।
आमजन से जुड़े मुद्दों को लेकर कांग्रेस और इंडिया गठबंधन
वहीं, कांग्रेस और इंडिया गठबंधन आमजन से जुड़े मुद्दों को लेकर मैदान में है। कांग्रेस या यूं कहें कि राहुल गांधी की गारंटी वाला न्याय पत्र यानी घोषणा पत्र कांग्रेसियों की मेहनत के बगैर, मतदाताओं तक पहुंचने लगा है। इसके लिए खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही जिम्मेदार हैं जिन्होंने कांग्रेस के घोषणा पत्र को इस तरह निशाने पर लिया कि लोग उसे खोज-खोज कर पढ़ने लगे।
ऐसे में नरेंद्र मोदी का यह दांव भी उलटा ही पड़ गया है। इस न्याय पत्र में आमजन खासतौर पर पिछड़े, दलित, आदिवासी और सामान्य निर्धन वर्ग की बेहतरी का सवाल है। सामाजिक ताने-बाने की बात है। शोषितों- वंचितों को उनका हक दिलाने की बात है। जिसे एक्स-रे यानी जाति जनगणना कहा जा रहा है। बेरोजगारी का सल्यूशन है। युवाओं के लिए पहली नौकरी पक्की, साल में एक लाख रुपये, अपरेंटिसशिप के, साथ ही 30 लाख सरकारी नौकरियों की गारंटी है तो गृहणियों के खाते में साल में एक लाख रुपये उनके एकाउंट में डालने की बात है। एलेक्रटोरल बांड का सच भी सबके सामने है।
राष्ट्रीय फलक के मुद्दे, बनारस में भी तारी
ये सारी बातें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के मतदाताओं के बीच भी तारी है। लोग इन मसलों की बात करते नजर आने लगे हैं। खास तौर पर ग्रामीण क्षेत्र के मतदाता। वहां, किसान से लेकर कृषि मजदूर हों या मनरेगा मजदूर। सबकी माली हालत ठीक नहीं। बच्चे बेरोजगार हैं। गृहणियों की दशा भी ठीक नहीं। वहीं शहर में छोटे व्यापारी हों या परंपरागत बनारसी साड़ी कारोबार से जुड़े गद्दीदार और बुनकर। सभी जूझ रहे हैं। व्यापारी वर्ग जीएसटी के नियमों को लेकर बेहाल है। छोटे उद्यमियों, कारोबारियों का तो बुरा हाल है।
युवाओं का बड़ा तबका है जो बेरोजगारी से परेशान है। पेपरलीक से परेशान है। बनारस के तकनीकी डिग्री धारकों का तो पलायन भी इस बीच जम के हुआ है। वो यूपी छोड़ काम की तलाश में बंगलूरू, हैदराबाद, चेन्नई तो गुरुग्राम तक निकलने को मजबूर हुए हैं। कुछ विदेश भी चले गए हैं। गृहणियों को घर चलाने में अच्छी खासी मशक्कत का समाना करना पड़ रहा है। किसान अलग से परेशां हाल हैं। कोई तीन दशक पुराने ट्रांसपोर्ट नगर योजना को लेकर आंदोलित है तो कोई प्रवेश द्वार को लेकर। आखिर जमीन तो उनकी ही जा रही है।
स्मार्ट सिटी में आज भी मैनहोल में सफाई को उतरा कर्मचारी दम तोड़ रहा
बनारस को धर्म, संस्कृति,शिक्षा-साहित्य से अलग पर्यटन नगरी के रूप में विकसित किया गया। उससे किस तबके को फायदा हुआ। चाहे वो विश्वनाथ मंदिर के इर्द-गिर्द पूजन सामग्री, फूल-माला के विक्रेता हों या मां गंगा में नाव चला कर अपने परिवार को पालने वाले नाविकों का हाल किसी से छिपा नहीं है। ठीक है कि सांसद का काम संसद में बैठकर नीति निर्माण करना, योजनाएं बनाना और उन्हें मूर्त रूप देना है। प्रधानमंत्री का काम तो और भी व्यापक है। देश विदेश की राजनीति और कूटनीति से लेकर देश को शक्तिशाली राष्ट्र बनाना है। लेकिन जब बतौर सांसद प्रधानमंत्री छोटी-छोटी योजनाओं का भी लोकार्पण और शिलान्यास खुद करते हों तो सवालों के घेरे में तो वो भी आएंगे ही।
अब कहने को स्मार्ट सिटी है, लेकिन आलम ये कि सीवर सफाई के लिए मैनहोल में उतरे सफाई कर्मी की मौत हो जाती है। यहां अब तक मानव रहित मैनहोल सफाई का इंतजाम नहीं हो सका है।
हर नागरिक त्रस्त
ट्रैफिक व्यवस्था से हर नागरिक त्रस्त है। उसके समाधान के नाम पर रोप-वे जिसके लिए एक विश्वविद्यालय तो दूसरे एक एनीबेसेंट का शुरू किया स्कूल भी है जिसकी जमीन का अधिग्रहण किया गया। दोनों को ही लेकर युवाओं में आक्रोश तो है ही। वहीं
अगर राष्ट्रीय स्तर पर रेवन्ना का मामला जोर-शोर से उछला है तो आईआईटी बीएचयू की छात्रा संग बीएचयू परिसर में बंदूक की नोक पर गैंग रेप और आरोपी बीजेपी आईटी सेल के पदाधिकारियों की संलिप्तता भी युवाओं के बीच ज्वलंत मुद्दा है। काशी की धरती पर महात्मा गांधी की धरोहर सर्व सेवा संघ का जमींदोज किया जाना लोग भूले नहीं हैं।
बीजेपी के विधायकों का लिटमस टेस्ट
साथ ही साथ इस चुनाव में संसदीय क्षेत्र की पांच विधानसभा सीटों पर काबिज भाजपा और अपनादल एस के विधायकों का भी तो लिटमस टेस्ट होगा। अंगुली कार्यशैली पर भी उठेगी। इतना ही नहीं, काशी विश्वनाथ कॉरिडोर वाले विधानसभा क्षेत्र में तो दो-दो विधायक, पूर्व व वर्तमान मंत्री मौजूद हैं, सवाल तो उन पर भी उठेगा। सवाल शहर उत्तरी के विधायक और प्रदेश में मंत्री पर भी उठेगा ही। कैंट, रोहनिया और सेवापुरी विधानसभा क्षेत्र के विधायकों पर भी सवाल खड़ा होगा। लिटमस टेस्ट तो पिछले ही साल निर्वाचित हुए मेयर का भी होगा।
बीजेपी के रणनीतिकार जुटे हैं ढाई महीने से
ऐसे में देश भर के चुनावी रणनीतिकारों की नजर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी पर है। यहां आखिरी चरण में एक जून को मतदान होना है मगर राजनीतिक दलों खासकर भाजपा और इंडिया गठबंधन की सांगठनिक तैयारियां अभी से ही शुरू हो गई हैं। मोदी ने 2019 का चुनाव 4 लाख,79 हजार, 505 मतों के अंतर से जीता था। भाजपा ने इस बार इस अंतर को और बड़ा करने का लक्ष्य रखा है।
2014 का परिणाम
भाजपा प्रत्याशी नरेंद्र मोदी ने 2014 में अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल को 3,71,784 वोटों के अंतर से हराया था। तब नरेंद्र मोदी को कुल 5,81,022 वोट मिले थे जबकि दूसरे स्थान पर रहे अरविंद केजरीवाल को 2,09,238 मत मिले थे।कांग्रेस प्रत्याशी अजय राय 75,614 वोटों के साथ तीसरे स्थान पर रहे। यहां तक कि उनकी जमानत भी जब्त हो गई। वहीं बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार भी अपनी ज़मानत नहीं बचा सके।
वाराणसी लोकसभा में बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी विजय प्रकाश जायसवाल चौथे स्थान पर रहे जिन्हें 60,579 मत मिले, वहीं उत्तर प्रदेश की सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी कैलाश चौरसिया 45,291 मतों के साथ पांचवें स्थान पर रहे।
2019 का परिणाम
पुलवामा और बालाकोट के मुद्दे के साथ 2019 में हुए आम चुनावों में, यहां बहुत मजेदार चुनावी मुकाबला देखने को मिला था। भाजपा प्रत्याशी नरेंद्र मोदी ने पिछले चुनाव में 4,79,505 मतों के अंतर से जीत दर्ज़ किया। उन्हें 6,74,664 वोट मिले। नरेंद्र मोदी ने सपा के उम्मीदवार Shalini Yadav को हराया जिन्हें 1,95,159 वोट मिले थे। 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के अजय राय को मोदी के खिलाफ इस बार भी मुंह की खानी पड़ी। इस बार भी उन्हें करीब 5 लाख से ज्यादा वोटों से हार का सामना करना पड़ा.
2024 में बदली –बदली है फिजा
इस वर्ष यानी कि 2024 में वाराणसी लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र से बहुजन समाज पार्टी से सैयद नियाज अली मंजू, पल्लवी पटेल के गठबंधन से गगन प्रसाद यादव, भारतीय जनता पार्टी से नरेंद्र मोदी और कांग्रेस (इंडिया गठबंधन) से अजय राय प्रमुख उम्मीदवार हैं। लेकिन इस बार पूर्व के दो चुनावों से कुछ अलग ही दिख रही है तस्वीर। बसपा प्रत्याशी नियाज अली मंजू मुस्लिम होते हुए भी बहुत ज्यादा नुकसान करते नजर नहीं आ रहे हैं। वो तो पिछले कुछ चुनावों से पार्षदी भी नहीं जीत पा रहे हैं।
गगन यादव भी बहुत प्रभावित करते नजर नहीं आ रहे। वहीं, इस बार कांग्रेस पिछले दो चुनावों की तुलना में कहीं ज्यादा मजबूत दिख रही है। शहरी क्षेत्र में अबकी बूथ मैनेजमेंट भी पहले से बेहतर है। वार्डों में कांग्रेस कार्यकर्ता सक्रिय हैं। साथ ही समाजवादी पार्टी भी पूरी मुस्तैदी से कांग्रेस के साथ कंधे से कंधा मिला कर चलती नजर आ रही है।
मुस्लिम वोटर, एकतरफा
2017 वाला दृश्य नहीं है। ऐसे में अगर अगर तीन लाख मुस्लिम वोटर, एकतरफा मतदान करते हैं, साथ ही इंडिया गठबंधन यादव, भूमिहार, मारवाड़ी, पटेल, क्षत्रिय वोटों को कायदे से सहेज लेता है तो मुकाबला रोचक हो सकता है। भाजपा का 10 लाख पार का नारा तो दूर लड़ाई कांटे की हो सकती है।
अगर इंडिया से आमआदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल की पत्नी सुनीता केजरीवाल का दौरा होता है तो इंडिया की स्थिति और मजबूत होगी। बनारस में करीब सवा लाख मारवाड़ी वोटर हैं जो वर्तमान में मोदी योगी सरकार की नीतियों से त्रस्त हैं।
गठबंधन कांटे की टक्कर देता नजर आएगा
वहीं अगर सपा के कद्धावर नेता सुरेंद्र पटेल और उनके भाई महेंद्र पटेल सहित पूरा परिवार इंडिया गठबंधन के लिए लग जाता है तो सेवापुरि और रोहनिया में भी गठबंधन कांटे की टक्कर देता नजर आएगा। लेकिन इसके लिए सुरेंद्र पटेल को मनाना होगा, जिन्हें सपा ने पहले उम्मीदवार बनाया था, फिर उन्हें हटा कर अजय राय को टिकट दिया गया। इस बीच अगर अखिलेश यादव, तेजस्वी यादव, आप नेता संजय सिंह और सुनीता केजरीवाल का बनारस दौरा मोदी की भारी बढ़त को रोकने में कामयाब हो सकता है।
सिंधियों का भी बड़ा वोटबैंक है जो मौजूदा डबल इंजन सरकार की नीतियों से खुश नहीं है। हाल के वर्षों में उनके रोजी-रोजगार पर हमला हुआ है इस बनारस में। संसदीय क्षेत्र में ज्यादा नहीं पर 20-25 हजार सिंधी वोटर तो हैं ही।
जहां तक कांग्रेस के टिकट पर 2004 में वाराणसी सीट से जीत हासिल करने वाले डॉ राजेश मिश्र के बीजेपी में शामिल होने और भाजपा को लाभ पहुंचाने का सवाल है तो, लगता नहीं कि वो कुछ खास कर पाएंगे। यहां बताते चलें कि 2022 के विधानसभा चुनाव मे ब्राह्मण बहुल कैंट विधानसभा क्षेत्र में राजेश मिश्रा 25000 वोट भी नहीं पा सके थे। ऐसे में उनका कहना कि कांग्रेस बूथ एजेंट तक नहीं खोज पाएगी, हवा हवाई ही लगताहै। उनसे बीजेपी को कोई फायदा होता नहीं दिख रहा।
शहर दक्षिणी में सपा से मिली थी चुनौती
2022 के विधानसभा चुनाव के परिणामों पर नजर डालें तो शहर दक्षिणी में भाजपा के डॉ. नीलकंठ तिवारी को सपा के कामेश्वर दीक्षित उर्फ किशन दीक्षित से कड़ी टक्कर मिली थी। नीलकंठ तिवारी को 99,416 मत मिले थे जबकि उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी किशन दीक्षित को 88,697 मत प्राप्त हुए थे। भाजपा ने 10,722 मतों के अंतर से यहां जीत दर्ज की थी।
सेवापुरी में भी सपा के दिग्गज सुरेंद्र पटेल ने दी चुनौती
उधर, सेवापुरी विधानसभा में भी भाजपा को जीत दर्ज करने के लिए संघर्ष करना पड़ा था। इस सीट पर कुर्मी बिरादरी के दो दिग्गजों सुरेंद्र पटेल और नीलरतन पटेल के बीच सीधा मुकाबला था। अपना दल सोनेलाल पटेल के नेता नीलरतन पटेल नीलू ने भाजपा के सिंबल पर चुनाव लड़ा था। उन्हें चुनाव में 1,05,163 मत मिले जबकि उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी सपा के सुरेंद्र पटेल को 82,632 मत हासिल हुए थे। नीलू ने 22,531 मतों के अंतर से जीत दर्ज की थी।
दो मंत्रियों और पूर्व सांसद की भी अग्निपरीक्षा
लोकसभा चुनाव में पांचों विधायकों के साथ सरकार के मंत्रियों का भी इम्तिहान है। परीक्षा तो पूर्व सांसद डॉ. राजेश मिश्र की भी है, जो कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए हैं। चुनाव में पार्टी यह देखेगी कि भाजपा में आने के बाद पूर्व सांसद ने पार्टी प्रत्याशी को कितना फायदा पहुंचाया।
कैंट में 60.63 और सेवापुरी में 47.6 फीसदी वोट मिले थे भाजपा को
2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को सबसे अधिक वोट कैंट विधानसभा सीट पर मिले थे। भाजपा के सौरभ श्रीवास्तव को 60.63 फीसदी वोट हासिल हुए थे। सौरभ को 1,47,833 मत मिले थे जबकि दूसरे स्थान पर रहीं सपा की पूजा यादव को 60,989 मत प्राप्त हुए थे। सौरभ ने यह चुनाव 86,844 मतों के अंतर से जीता था। इसी प्रकार सेवापुरी विधानसभा क्षेत्र में भाजपा प्रत्याशी नीलरतन पटेल नीलू को 47.6 फीसदी वोट मिले थे। वहीं सपा के सुरेंद्र सिंह पटेल को 37.41 फीसदी वोट प्राप्त हुए थे। नीलू को 1,05,163 मत मिले थे जबकि सुरेंद्र पटेल को 82,632 मत हासिल हुए थे।
ढाई महीने से भाजपा के रणनीतिकार जुटे हैं साख बचाने में
यही वजह है कि बीजेपी के महासचिव सुनील बंसल पिछले ढाई महीने से वाराणसी में कैंप कर रहे हैं। गृहमंत्री और बीजेपी के चुनावी राजनीति के मास्टर माइंड अमित शाह ने बंसल को हर कदम बड़े एहतियात से उठाने का निर्देश दिया है। ऐसे में बंसल एड़ी चोटी का जोर लगाए हैं। हालांकि सूत्रों के मुताबिक वो खुद पार्टी के 10 लाख पार के नारे को खुद ही खारिज कर चुके हैं।
भाजपा के साथ आई सुभासपा, सपा ने किया कांग्रेस से गठजोड़
तय लक्ष्य को अंजाम तक ले जाने में पार्टी के विधायकों और मंत्रियों की बड़ी भूमिका होगी। भाजपा के लिए राहत वाली बात यह है कि वाराणसी संसदीय क्षेत्र की सभी पांचों विधानसभा सीटें उसके पास है। चार पर भाजपा खुद और एक पर उसकी सहयोगी अपना दल-सोनेलाल का विधायक काबिज है। 2022 के विधानसभा चुनाव में इन पांचों सीटों पर 11,53,531 वोट पड़े थे। भाजपा प्रत्याशियों के खाते में 6,05,752 वोट आए थे जबकि सपा उम्मीदवारों को 3,52,572 मत मिले थे।
इस प्रकार भाजपा को 53 फीसदी से अधिक वोट हासिल हुए थे। बीते दो साल में सियासी तस्वीर काफी बदल गई है। 2022 में ओमप्रकाश राजभर की पार्टी सुभासपा राजग से अलग होकर चुनाव लड़ी थी, 2024 के लोकसभा चुनाव में सुभासपा एक बार फिर राजग के साथ है। वहीं 2022 में सपा का बसपा से गठबंधन था, मगर मौजूदा चुनाव में सपा का कांग्रेस से गठजोड़ है। बहरहाल, मौजूदा लोकसभा चुनाव में भाजपा की जीत का अंतर बढ़ता है तो निश्चित ही उसका श्रेय विधायकों को भी मिलेगा और अंतर घटता है तो 2027 में उनकी राह कठिन होगी।