अंतरराष्ट्रीय ध्रुपद मेला का शुभारंभ सोमवार को किया गया। मेला का शुभारंभ महंत प्रो विश्वम्भरनाथ मिश्र, उत्तर प्रदेश नाटक अकादमी के अध्यक्ष पदमश्री डॉ राजेश्वर आचार्य तथा ख्यात कलाकार डॉ ऋत्विक सान्याल ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्ज्वलन कर किया।
पं. स्वर्णप्रताप चतुर्वेदी के आचार्यत्व में वैदिक अध्येताओ पं. पंकज, हेमंत, जयशंकर, रमेश, कीर्तिनाथ ने वैदिक मंगलाचरण की प्रस्तुति हुई।
कलाकारों की प्रस्तुति के पीछे कठिन साधना: महंत प्रो.विश्वम्भरनाथ
ध्रुपद मेला के संयोजक प्रो विश्वम्भरनाथ मिश्र ने वर्तमान कोविड काल में आयोजन की रूपरेखा को सीमित रूप में करने के साथ आयोजन की वैश्विक महत्ता की चर्चा करते हुए इस आयोजन को कोविड के उपरांत कलाकारों के लिए एक नई आशा का प्रतीक बताया।
महंत प्रोफेसर विश्वम्भरनाथ मिश्र ने बताया कि विदेशों से भी दर्शक कलाकार आते हैं जो इस बार नही आ पाए हैं। हम अगले वर्ष फिर उसी उत्साह के साथ आयोजन करेंगे। उन्होंने कहा कि लोग आकर कलाकरों के प्रस्तुति को देखते जरूर हैं लेकिन इसके पीछे कलाकारों की कठिन साधना होती है। यहां हर चीज अनुष्ठान के रूप में देखा जाता है। फिर चाहे वह संगीत हो या कोई अन्य आयोजन।
उन्होंने कहा कि जो भी कलाकार यहाँ अपनी प्रस्तुति देते हैं वह पूरे वर्ष कठिन मेहनत करते हैं। उन्होंने एक वर्ष कैसे बिताया होगा यह वही जानते हैं। इसलिए सभी से अनुरोध है ऐसे कलाकारों की स्वेच्छा से मदद जरूर करें। यह बाबा विश्वनाथ और संकटमोचन महराज और माता भगवती की ही कृपा है कि यह आयोजन पिछली वर्ष सफल रहा और इस वर्ष भी रहेगा।
अतिथियों का हुआ स्वागत
डॉ. ऋत्विक सान्याल ने ध्रुपद मेले के आयोजन की यात्रा को ध्रुपद के प्रसार संवर्धन का प्रतीक बताया। अंत मे संस्थापक सदस्य पद्मश्री डॉ राजेश्वर आचार्य ने ध्रुपद मेला के शताब्दी वर्ष की सफलता की कामना व्यक्त करते हुए अपने वरिष्ठजनो सुरबहार वादक गुरु प्रो लालमणि मिश्रा, पखावज गुरु महंत पं अमरनाथ मिश्र, महंत प्रो वीरभद्र मिश्र तथा स्वर्गीय काशी नरेश डॉ विभूति नारायण सिंह की यशकाया को नमन किया।
ध्रुपद मेला के वरिष्ठ सहयोगी पं गोपाल पांडेय ने अतिथियों को माल्यार्पण किया।
कार्यक्रम का कुशल संचालन संयुक्त रुप से डॉ. प्रीतेश आचार्य एवम सौरभ चक्रबर्ती ने किया।