काशी में ‘मसाने की होली’ पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। हर ओर महाश्मशान पर चिता भस्म की होली का अद्भुत दृश्य। महाश्मशान मणिकर्णिका घाट जहां युगों से चिताओं की आंच ठंडी नहीं पड़ी वहां रंग पर्व का उत्साह गुरुवार की सुबह से ही छलक पड़ा।
मान्यता है कि रंगभरी पर पार्वती का गौना लाने के बाद बाबा विश्वनाथ अपने गणों और भक्तों के साथ होली खेलने महाश्मशान पर आते हैं। यहां धधकती चिताओं के बीच चिता भस्म से होली खेलते हैं।
हर ओर महादेव का जयकारा
महादेव शिव के भस्मांगरागाय महेश्वराय स्वरूप का दिव्य श्रृंगार घाट पर बाबा मशाननाथ का किया गया। सुबह से ही साज सज्जा और पूजन अनुष्ठान का दौर चला तो घाट भी महादेव के भस्म से सराबोर नजर आया। रागरागिनियां सजीं और सुरों की टेर खनक उठी। फाग के राग गूंजे और महादेव शिव जीवन-मरण के दिव्य दर्शन को अपने भक्तों को उत्सव रचाकर समझाने भक्तों के बीच आ गए। बाबा के साथ उनके गण और भक्त, सामान्य जीव भी चिता भस्म लगाकर शिवस्वरूप हो गए।
निहाल हो गई काशी
मोक्ष की नगरी काशी में महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर यह अनूठा उत्सव देखने और उसमें शामिल होने के लिए समूची काशी के लोग सुबह से ही जुटने लगे। भारी भीड़ के आगे कोरोना का डर कहीं नहीं दिखाई दिया। अन्य राज्यों व देशों से आए पर्यटकों के लिए भी यह एक विस्मयकारी कौतूहल रहा। तमाम भूत-प्रेत पिशाच, यक्ष गंधर्व, किन्नर सभी बाबा की टोली में शामिल होकर मस्त-मलंग महाश्मशान की इस होली का आनंद लेने पहुंचे तो राग विराग की नगरी काशी भी निहाल हो गई। चिता भस्म की होली के पूर्व महाश्मशान नाथ की आरती की परंपरा का निर्वहन किया गया। संगीत घरानों के कलाकार बाबा की महिमा का गान करने पहुंचे।
रंगभरी एकादशी के अगले दिन मसाने की होली
महादेव शिव की यह अनोखी होली रंगभरी एकादशी के ठीक अगले दिन मनाने की परंपरा रही है। यह होली महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर खेली जाती है।
सुबह से भक्त जन दुनिया की दुर्लभ, चीता भस्म से खेली जाने वाली होली की तैयारी में लग जाते हैं। कहा जाता है कि बाबा दोपहर में मध्याह्न स्नान करने मणिकर्णिका तीर्थ पर आते हैं। यहां स्नान करने वालों को पुण्य बांटते हैं। बाबा स्नान के बाद अपने प्रिय गणों के साथ मणिकर्णिका महाश्मशान पर आकर चिता भस्म से होली खेलते है। यह परम्परा अनादि काल से भव्य रूप से मनायी जाती रही हैं।
इस परम्परा को पुनर्जीवित किया बाबा महाश्मसान नाथ मंदिर के व्यवस्थापक गुलशन कपूर ने, जो पिछले 20 वर्षों से इस परम्परा को भव्य रूप देकर दुनिया के कोने कोने तक पहुंचाया।
अपने गणों के लिए बाबा खेलते हैं श्मशान में होली
गुलशन कपूर बताते हैं कि काशी में यह मान्यता है कि रंगभरी एकादशी के दिन बाबा विश्वनाथ माता पार्वती का गौना (विदाई) करा कर अपने धाम लाते हैं जिसे उत्सव के रूप में काशीवाशी मनाते है और रंग का त्योहार होली का प्रारम्भ माना जाता है। इस उत्सव में सभी शामिल होते हैं जैसे देवी, देवता, यक्ष, गन्धर्व, मनुष्य। और जो शामिल नहीं होते हैं वो हैं बाबा के प्रिय गण भूत, प्रेत, पिशाच, दृश्य-अदृश्य शक्तियाँ जिन्हें बाबा ने स्वयं मनुष्यों के बीच जाने से रोक रखा है।
लेकिन इनकी खुशी के लिए बाबा शिवशम्भु चिता भस्म की होली खेलने पहुंच जाते हैं अपने गणों के बीच। मसाने में बाबा भस्म की होली खेलते हैं। इस पारंपरिक उत्सव को काशी के मणिकर्णिका घाट पर जलती चिताओं के बीच मनाया जाता हैं।
इसे देखने दुनिया भर से लोग काशी आते हैं और इस अद्भुत, अद्वितीय, अकल्पनीय होली को देखकर, खेलकर दुनिया की अलौकिक शक्तियों के बीच अपने को खड़ा पाते हैं। जीवन के शाश्वत सत्य से परिचित होकर बाबा में अपने को आत्मसात करते हैं।
इस आयोजन में गुलशन कपूर के द्वारा बाबा महाश्मशान नाथ और माता मशान काली ( शिव शक्ति ) का मध्याह्न आरती कर बाबा व माता को चिता भस्म व गुलाल चढ़ाया जाता है।
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