November 24, 2024
Twin Tower Noida

9 साल की न्याय की लड़ाई में SC ने दिया साथ तो 9 सेकेंड में ही ध्वस्त हो गया भ्रष्टाचार का Twin Tower

दोनों टावरों को गिराने के लिए 3,700 किलोग्राम से अधिक विस्फोटक का इस्तेमाल किया गया था।

नई दिल्ली। देश का सबसे बड़ा डिमोलिशन (Twin Tower demolition) रविवार को नोएडा में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर किया गया। भ्रष्टाचार के केंद्र में रहे नोएडा का ट्विन टॉवर भारी सुरक्षा बंदोबस्त और एहतियातों के बीच कुछ ही सेकेंड में मलबे में तब्दील हो गया। इस टॉवर को गिराने का आदेश 2014 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दिया था लेकिन बिल्डर्स ग्रुप ने सुप्रीम कोर्ट का रूख कर लिया था।

हालांकि, बीते साल अगस्त में सुप्रीम कोर्ट ने भी हाईकोर्ट के आदेश को बरकरार रखते हुए तीन महीने के भीतर इसको गिराने का आदेश दिया था। लेकिन इस टॉवर (Twin Tower) को गिराने के लिए सुरक्षित व्यवस्था करने में एक साल का वक्त लग गया। इस टॉवर के गिराए जाने के बाद एक बात तो साफ हो गया कि न्याय की लड़ाई लंबी तो चलती है लेकिन अगर न्यायपालिका साथ दे दे तो वर्षों के भ्रष्टाचार को सेकेंड्स में खत्म किया जा सकता है।

दो टॉवर थे जो सुरक्षा के लिए आफत बन सकते

नोएडा के सेक्टर 93ए में यह दोनों टॉवर एपेक्स (Apex) व सिएन (Ciyen) थे। दरअसल, दोनों टॉवर जिस जमीन पर बने हैं वह बगीचे के लिए अलॉट थी। लेकिन मुनाफा कमाने के चक्कर में डेवलपर ने इस पर टॉवर बनाने का फैसला नियमों को दरकिनार करके लिया था। दोनों टॉवर्स पर बिल्डर ने 40 फ्लोर बनाने की योजना बनाई थी। हालांकि, कोर्ट-कचहरी के चक्कर में तमाम फ्लोर इन टॉवर्स के नहीं बन पाए। ट्विन टॉवर के एपेक्स टॉवर की 32 मंजिलें तैयार थीं जबकि सियेन की 29 मंजिलें। एपेक्स की ऊंचाई 109 मीटर तो सियेन 97 मीटर था। बिल्डर ने इन दोनों टॉवर्स के अधिकतर फ्लैट बेच भी दिए थे।

2012 से शुरू हुई थी सोसाइटी के लोगों की लड़ाई

2012 में आसपास की सोसाइटी के लोगों ने अपनी सुरक्षा को देखते हुए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। दरअसल, यहां बने उस विवादित टॉवर्स को उस जमीन पर बनाया जा रहा था जहां बगीचा प्रस्तावित था। लेकिन संशोधित योजना के तहत यहां दो टॉवर्स को खड़ा करने की अनुमति संबंधित अधिकारियों ने गैर कानूनी तरीके से दे दी थी। इसके खिलाफ 2012 में सुपरटेक एमराल्ड सोसाइटी (Supertech Emerald Court Society) के लोगों ने कानून का दरवाजा खटखटाया था। 9 साल तक चली कानूनी लड़ाई के बाद ट्विन टावरों को तोड़ा जा सका।

2014 में हाईकोर्ट ने दिए टॉवर गिराने का आदेश

2014 में इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने इन दोनों टॉवर्स को गिराने का आदेश दिया था। इस आदेश के बाद कई अधिकारियों पर कार्रवाई भी की गई थी। हालांकि, डेवलपर ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। लंबी कानूनी लड़ाई चली। लेकिन यहां के आसपास के लोगों ने हार नहीं मानी।

करीब नौ साल की लड़ाई के बाद सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने भी तीन महीने के भीतर ट्विन टॉवर को गिराने का आदेश दिया। हालांकि, अगस्त 2021 में दिया गया सुप्रीम कोर्ट का आदेश, अगस्त 2022 में पालन हो सका। यह इसलिए क्योंकि इतने ऊंचे टॉवर्स को गिराने के लिए आसपास की सुरक्षा का भी ख्याल रखा जाना था।
ट्विन टॉवर में 900 से अधिक फ्लैट थे जिसमें अधिकतर को बिल्डर ने बुक कर दिया था। दो-तिहाई फ्लैट बुक थे या बेचे जा चुके थे। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने ब्याज सहित सभी के पैसे लौटाने का भी आदेश डेवलपर या बिल्डर को दिए हैं।

मानक को दरकिनार कर बनता गया टॉवर

ट्विन टॉवर (Twin Tower demolition) इसलिए भी गिराना आवश्यक था क्योंकि किसी भी मल्टीस्टोरी टॉवर के लिए करीब 16 मीटर की दूरी का होना आवश्यक है। यह इसलिए ताकि किसी प्राकृतिक आपदा यथा भूकंप या आगलगी के दौरान आसपास के टॉवर्स सुरक्षित रहे। लेकिन ट्विन टॉवर में इसका पालन नहीं किया गया था। किसी प्राकृतिक आपदा के दौरान इस टॉवर को अगर नुकसान पहुंचता तो आसपास बने तमाम टॉवर्स व बिल्डिंग ट्विन टॉवर के नीचे आकर नेस्तनाबूद हो जाते।

नोएडा में सुपरटेक ट्विन टॉवर रविवार को नौ सेकेंड में इतिहास बन गया। अब यहां सिर्फ मलबे का ढेर ही बचा है। एक भीषण विस्फोट कर इसे गिरा दिया गया है। विस्फोट से कुछ घंटे पहले इलाके को खाली करा लिया गया था। ट्रैफिक को डायवर्ट कर दिया गया था। किसी भी आपात स्थिति से निपटने के लिए अस्पताल में तैयारी थी, एंबुलेंस तैयार रखे गए थे।

गिराने के पहले काफी तैयारियां की गई

दोनों टावरों को गिराने के लिए 3,700 किलोग्राम से अधिक विस्फोटक का इस्तेमाल किया गया था। गिराए जाने वाले टॉवर्स में करीब सात हजार से अधिक छेद कर एक्सप्लोसिव डाले गए थे। यह सुनिश्चित किया गया था कि दोनों टॉवर वाटरफॉल टेक्निक से ही गिरे। यानी मलबा अगल-बगल न गिरकर अपनी नींव के पास ही गिरे।

टॉवर गिराने के पहले आसपास रहने वाले सात हजार से अधिक लोगों को बाहर सुरक्षित जगहों पर निकाला गया। पूरे क्षेत्र को वैकेट कराया गया। यहां की आवश्यक सुविधाएं बाधित कर दी गई। यानी गैस व बिजली आपूर्ति बंद कर दी गई थी। शाम को बिजली आपूर्ति बहाल की जाएगी। लोग जब अपने घरों में लौटेंगे तो मास्क पहनकर ही कुछ देर तक रहना होगा। टॉवर गिराने के पहले ग्रेटर नोएडा एक्सप्रेसवे पर सुबह ही ट्रैफिक रोक दिया गया था। आसपास के क्षेत्र को नो-फ्लाई जोन में भी बदल दिया गया था।

डिमोलिशन के लिए प्रसिद्ध कंपनी को किया हायर

ट्विन टॉवर को गिराने के लिए देश की सबसे बड़ी भवन गिराने वाली कंपनी एडिफिस इंजीनियरिंग मुंबई के अलावा दुनिया की एक माहिर कंपनी जेट कंपनीज जो दक्षिण अफ्रीका की है, से करार किया गया था। कई महीनों से यह लोग इस काम के लिए तैयारी कर रहे थे। धूल के गुबार से आसपास के क्षेत्रों को अधिक नुकसान से बचाने के लिए आसपास के टॉवर्स या बिल्डिंग को एक स्पेशल प्रकार के कपड़े से ढका गया था। टॉवर को गिराने के पहले किसी प्रकार के नुकसान की क्षतिपूर्ति के लिए 100 करोड़ रुपये का बीमा कराया गया था। बीमा या विध्वंस आदि के जो भी खर्चे हैं, उसे सुपरटेक को ही वहन करना है।

अब जब ट्विन टॉवर (Twin Tower) गिर चुका है तो अगली चुनौती यहां के मलबे को हटाना होगा। हालांकि, नोएडा प्राधिकरण ने करीब 5-6 हेक्टेयर जमीन चिंहित किया है। यहां मलबे का निस्तारण किया जाएगा। नौ सेकेंड में जो ट्विन टॉवर मलबा में तब्दील हुआ, उस मलबे को हटाने में महीनों या साल लग सकते हैं। इसमें 55 हजार टन मलबा निकला है। हजारों टन स्टील व आयरन इसके मलबे में है। फिलहाल, नौ साल की लंबी लड़ाई में आम आदमी की जीत हुई है और भ्रष्टाचार का टॉवर नेस्तनाबूद हो चुका है।

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