November 21, 2024
HC Allahabad

20 साल तक सजा काटने के बाद बेगुनाह साबित हुआ विष्णु

उस घिनौने अपराध की सजा काटा जिसको विष्णु ने किया ही नहीं। Highcourt ने रिहाई का आदेश दिया

आगरा। अंग्रेजी में कहा गया है ‘Justice delayed, Justice denied’ यानि न्याय में देरी न्याय न देने के समान है। ललितपुर के विष्णु (Vishnu Tiwari) को भले ही अंग्रेजी की यह दो लाइन नामालूम हो लेकिन यह उसके जीवन में एकदम सटीक बैठता है।
20 साल तक ललितपुर (Lalitpur) के रहने वाले विष्णु ने उस घिनौने गुनाह की सजा भोगी जो उसने किया ही नहीं था। जीवन के महत्वपूर्ण 20 साल जेल में काटने के बाद विष्णु बेगुनाह साबित हो चुके हैं लेकिन क्या कानून की नजरों में इसे न्याय कहा जा सकता है। शायद इस यक्ष प्रश्न का जवाब समाज व नीति नियंताओं को फौरी तौर पर खोजना होगा जो किसी विष्णु को ऐसी स्थिति से बचा सके।

यह है पूरा मामला

यह मामला ललितपुर जिले के महरौनी कोतवाली के सिलावन ग्राम के विष्णु तिवारी (Vishnu Tiwari) का है। बताया जा रहा है कि करीब 20 साल पहले गाय बांधने को लेकर विवाद हुआ। इस मामले में विपक्षी ने विष्णु तिवारी पर अन्य धाराओं के अतिरिक्त रेप का भी केस दर्ज हो गया।

एक एक कर दुनिया छोड़ गए अपने

विष्णु के पिता रामेश्वर प्रसाद तिवारी सामाजिक रूप से तिरस्कार मिलने का सदमा झेल नहीं सके और उन्हें लकवा लग गया जिसके बाद उनकी मौत हो गई। पिता की मौत के बाद विष्णु के बड़े भाई दिनेश तिवारी की भी मौत हो गई।
सामाजिक तिरस्कार को यह परिवार सहन न कर सका और बर्बादी की ओर बढ़ता गया। पांच भाइयों में दिनेश के बाद रामकिशोर तिवारी की हार्ट अटैक से मौत हो गई।
विष्णु की माँ भी बेटों के गम और समाज के तिरस्कार को झेल न सकी और दुनिया से चल बसी।
इस घटना का दुःखद पक्ष यह कि विष्णु को अपने किसी परिजन का अंतिम दर्शन नसीब न हुआ। परिवार में चार लोगों की मौत पर उन्हें एक की भी अर्थी में आने के लिए बेल नहीं मिली।

हाइकोर्ट से मिला न्याय

आगरा (Agra) की सेंट्रल जेल (Central Jail) में बंद विष्णु 20 साल से उस घिनौने अपराध की सजा काट रहा था जो उसने किया ही नहीं। अब 20 साल बाद इलाहाबाद हाइकोर्ट (Allahabad High Court) ने उसे न्याय दिया है। हाईकोर्ट ने विष्णु को रिहा करने का आदेश जारी किया है।

गरीब को न्याय इसी तरह मिल रहा

विष्णु बेहद गरीब परिवार से है। इस केस को लड़ने के लिए उसके परिवार के पास न तो पैसे थे और ना ही कोई अच्छा वकील। इस लड़ाई में परिवार की पारिवारिक जमीन भी बिक गई। हालांकि, सेंट्रल जेल आगरा आने के बाद यहां उसे जेल प्रशासन की मदद से विधिक सेवा समिति का साथ मिला। समिति के वकील ने हाईकोर्ट में विष्णु की ओर से याचिका दाखिल की। सुनवाई चली और एक लम्बी बहस के बाद विष्णु को रिहा कर दिया गया।

सोशल एक्टिविस्ट ने लिखा पत्र

आगरा के रहने वाले सोशल/आरटीआई एक्टिविस्ट (RTI Activist) नरेश पारस (Naresh Paras) ने विष्णु के प्रकरण में राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग को एक पत्र लिखा है। नरेश पारस का कहना है कि विष्णु के मामले में पुलिस ने लचर कार्रवाई की। सही तरीके से जांच नहीं की गई जिसके चलते विष्णु को अपनी जवानी के 20 साल जेल में बिताने पड़े। जब विष्णु जेल में आया था तो उसकी उम्र 25 साल थी। आज वो 45 साल का होकर जेल से बाहर जा रहा है। दोषी पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई करने के साथ ही विष्णु को मुआवजा दिया जाए। मुआवजे की रकम पुलिसकर्मियों के वेतन से काटी जाए।

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