July 5, 2024
Parag Modi

… तो क्या विश्वविद्यालय प्रकाशन का वजूद भी मिट जाएगा वाराणसी से

ये देश का अग्रणी प्रकाशन गृह है। ये प्रकाशन गृह पुरानी काशी के मध्य स्थित चौक मोहल्ले में अवस्थित है।

Varanasi heritage: किसी देश या किसी शहर की पहचान उसकी भाषा, संस्कृति और साहित्य से होती है। उसी की छांव में वहां के लोग पलते-बढते हैं। इसमें से अगर कुछ भी मिट जाए तो ये मान लेना चाहिए कि देश अथवा शहर अपनी पहचान खो रहा है। अगर हम काशी की बात करें तो ये तो सर्व विद्या की राजधानी है। ये गोस्वामी तुलसी दास, संत कबीर दास, रैदास की नगरी है। ये महान उपन्यासकार, कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद, भारतेंदुर हरिश्चंद्र की नगरी है। ये आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी, प्रो नामवर सिंह, प्रो काशीनाथ सिंह, प्रो स्व. विद्या निवास मिश्र, प्रो शिवप्रासद सिंह की कर्म स्थली रही है। लिहाजा इस शहर में साहित्य और खास तौर पर हिंदी साहित्य जन्मा ही नहीं बल्कि पुष्पित और पल्लवित भी हुआ। आधुनिक हिंदी का जन्म यहीं हुआ।

बदलती काशी में आधुनिकता के आगे विरासत मिट रही

लेकिन समय के साथ इस काशी में भी काफी बदलाव आया है। इस प्राचीन नगरी में भी अब आधुनिकता, व्यावसायिकता ने तेजी से पांव पसारना न केवल आरंभ कर दिया है, अपितु ये कहें कि अपनी पैठ बना ली है तो अतिशयोक्ति न होगी। ऐसे में शनै-शनै यहां की भाषा, संस्कित, साहित्य भी अब नेपथ्य में जाने लगा है। हालांकि युग द्रष्टा भारतेंदुर हरिश्चंद्र ने वर्षों पूर्व इसकी कल्पना कर ली थी, तभी तो उन्होंने, देखी तुमरी काशी… जैसी रचना की।

पुस्तकालय भी हुआ करते थे पहचान

इस शहर में कभी एक दो नहीं अनेक सार्वजनिक पुस्तकालय हुआ करते थे, जहां लोग अपना समय निकाल कर जाते और रुचि अनुसार साहित्यिक रचनाओं का अध्ययन करते। इनमें कारमाइकल लाइब्रेरी हो या गोयनका लाइब्रेरी। ये दोनों ही पूरे देश में प्रसिद्ध रहीं। लेकिन आज इन दोनों का वजूद मिट चुका है। यही नहीं विद्यार्थियों के लिए पंडित मदन मोहन मालवीय जी की कर्मभूमि बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की अपने परिसर में तो एक बड़ा सयाजीराव पुस्तकालय रहा ही, साथ ही समूचे शहर में स्टडी सेंटर हुआ करते थे, जहां छात्र-छात्राएं खास तौर पर शोध छात्र-छात्राएं जा कर घंटों अपने शोध कार्य हेतु अध्ययन किया करते रहे। इसी काशी में नागरी प्रचारिणी सभा भी रही, वर्तमान में भी है। एक से बढ़ कर एक प्रकाशक और प्रकाशन संस्थाएं रहीं। लेकिन कहा न सब व्यावसायिकता की भेंट चढ गया।

विवि प्रकाशन को कैसे किया जा सकता नजरअंदाज

इसी कड़ी में आधी सदी से भी ज्यादा वक्त से मौजूद विश्वविद्यालय प्रकाशन को भला कौन नजरंदाज कर सकता है। ये देश का अग्रणी प्रकाशन गृह है। ये प्रकाशन गृह पुरानी काशी के मध्य स्थित चौक मोहल्ले में अवस्थित है। कहें तो चौक पुलिस थाना परिसर से सटा है। यह काशी विश्वनाथ कॉरीडोर से अत्यंत निकट है। आध्यात्मिक हो या सामाजिक अथवा राजनीतिक पुस्तकों का यहां से प्रकाशन होता रहा है। साथ ही साथ उच्च शिक्षा की पाठ्य पुस्तकें और संदर्भ ग्रंथ भी यहां उपलब्ध हैं।

संकट में है प्रकाशन

लेकिन वर्तमान में ये प्रकाशन गृह गंभीर संकट से गुजर रहा है। मामला किरायेदारी का है। हाल के दिनों में जिस तरह से शिक्षा, संस्कृति और साहित्य की नगरी, एक पर्यटन नगरी के रूप में विकसित होने लगी है, यहां के वाशिंदे अब अपने घरों और भवनों को होटल में तब्दील करने लगे हैं, ताकि उन्हें अच्छा रिटर्न मिल सके। कई मकान मालिक तो अपने पुराने भवनों को गिरा कर नई मल्टीस्टोरी खड़ी कर उसे अत्याधुनिक होटल, सराय, लॉज में तब्दील कराने लगे हैं। व्यावसायिक दृष्टिकोण से उनकी सोच सर्वथा गलत भी नहीं कही जा सकती।

ऐसे ही विश्वविद्यालय प्रकाशन जहां विगत 50-55 साल से किराये के बेसमेंट में संचालित हो रहा था, उसके नई पीड़ी के भू-स्वामी यानी मकान मालिक भी अब एक होटल बनवा रहे हैं। ऐसे में उनकी भी मंशा है कि काशी विश्वनाथ कॉरीडोर के समीप अगर आधुनिक होटल होगा तो पर्यटकों से अच्छी खासी आमदनी भी होगी। लिहाजा भवन स्वामी, प्रकारांतर से विश्व प्रसिद्ध विश्वविद्यालय प्रकाशन गृह को भी वहां से हटाने की इच्छा रखने लगे हैं ताकि उनके निर्माणाधीन होटल को विस्तार मिल सके।

भेजी लीगल नोटिस

उन्होंने प्रकाशन गृह के प्रोपराइटर को लीगल नोटिस भी भेजा है। उधर, प्रकाशन गृह के प्रोपराइटर अनुराग कुमार मोदी और पराग कुमार मोदी अपने पिता द्वारा स्थापित संस्था को मिटने नहीं देना चाहते। उनकी सोच सर्वथा अनुचित भी नहीं। वो 50-55 साल से किरायेदार हैं और समय के साथ-साथ भवन स्वामी की अपेक्षाओं के अनुरूप किराया वृद्धि को भी वहन कर रहे हैं। हर तीन वर्ष पर 22 फीसदी की दर से किराये में वृद्धि के साथ जीएसटी सहित किराया अदा कर रहे हैं।

जीविकोपार्जन का भी साधन

ये मोदी परिवार के जीविकोपार्जन का एक मात्र साधन भी है। लिहाजा पराग मोदी बंधु प्रकाशन गृह को बतौर किरायेदार आगे भी जारी रखना चाहते हैं। उनकी सोच है कि ये प्रकाशन गृह अपने स्थान पर बना रहे। इसकी पहचान कायम रहे। लिहाजा पराग मोदी ने शनिवार 20 अप्रैल को प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ से गुहार लगाई है। उन्होंने मुख्यमंत्री के जनसुनवाई पोर्टल/एप के मार्फत अपनी पीड़ा दर्ज कराई है।

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